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________________ दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 4.9.47 आर्यिका चन्द्रमतीजी (संवत् 2034) विदुषी आर्यिका रत्न श्री चन्द्रमती माताजी अहर्निश पठन-पाठन, ज्ञान, ध्यान, तप, त्याग, संयम में लवलीन रहने वाली आदर्श श्रमणी हैं। आपके पिताजी नावां (कुचामन रोड) के निवासी सेठ सीतारामजी गोधा थे, संवत् 2005 को दीपावली के दिन आपका जन्म हुआ, नाम 'रोशनबाई' प्रसिद्ध हुआ। आप प्रखर प्रतिभा संपन्न हैं। अल्पायु में विवाह, वैधव्य का सुख-दुःखमय संसार देख लेने पर विशुद्धमती जी विनयमती जी, सन्मति जी माताजी के संसर्ग का आत्मा पर प्रभाव पड़ा, क्रमशः पंचम, सप्तम प्रतिमा करके कार्तिक कृ. प्रतिपदा के दिन नागौर में आचार्य श्री सन्मतिसागरजी के श्रीमुख से आर्यिका दीक्षा अंगीकार की, दीक्षा के अवसर पर आपने एक घंटा उद्बोधन दिया, उसे श्रवणकर उपस्थित लोग धन्य-धन्य पुकारने लगे। वर्तमान में भी आपकी मधुर प्रवचनशैली को सुनने के लिये लोग लालायित रहते हैं, आप अपने उपदेशामृत द्वारा लोगों में त्याग, नियम, निवृत्ति की भावनाएं भरती हैं। आपका कोमल एवं निष्कषायी शांत हृदय सबके लिये प्रेरणास्रोत बना है। इस प्रकार आप अर्हनिश स्वपर कल्याण में तल्लीन रहती हैं।200 4.9.48 आर्यिका भरतमतीजी (संवत् 2036) आप हमाई जिला डूंगरपुर निवासी जीतमल जी सिंघवी की कन्या हैं, कार्तिक शुक्ला पूर्णमासी संवत् 1984 पें आपका जन्म हुआ। विवाह रामगढ़ के श्री गणेशलालजी से हुआ, 5 वर्ष बाद पति वियोग ने आपके जीवन क्रम को बदला। श्री दयासागरजी से संवत् 2034 में क्षुल्लिका दीक्षा ली, उसमें आपने 32 उपवास किये, पश्चात् सोनगिर में संवत् 2036 श्रावण शुक्ला 12 के दिन आप आर्यिका बनीं, आप स्वाध्याय, ध्यान, तप व धर्म प्रभावना में सतत जागरूक हैं।201 4.9.49 आर्यिका सुव्रतामतीजी आपने संवत् 1950 में हब्बड़ी तालुका धारवाड़ में श्री रायप्पाजी के यहां पर जन्म लिया। आपका जन्म नाम था अम्माचवा और मातृभाषा थी कन्नड़। 10 वर्ष की उम्र में आपकी शादी श्री रागप्पा जी के साथ हुई, बचपन से ही धार्मिक भावना आप दोनों के हृदय में कूट-2 कर भरी हुई थी, अत: दोनों ने छठी प्रतिमा मुनि श्री पायसागरजी से ली, वैराग्य तीव्र हुआ तो पति ने क्षुल्लक दीक्षा और आपने आर्यिका दीक्षा श्री देशभूषण जी म. से ली। आपके चातुर्मास संयम तप व धर्म की वृद्धि करने वाले हुए।202 4.9.50 आर्यिका शान्तिमतीजी आपने बाराबांकी निवासी श्री कुन्थुदासजी के यहां संवत् 1983 में जन्म लिया, अल्पवय में ही आपने अष्टसहस्री, सर्वार्थसिद्धि, गोम्मटसार, न्यायदीपिका जैसे उच्च सैद्धान्तिक ग्रंथ कंठस्थ कर लिये थे, आप प्रवचन कला में भी दक्ष थीं, अपने 32 चातुर्मासों में आपने जैन समाज को ज्ञान, दर्शन, चारित्र में काफी आगे बढ़ाया तीर्थराज 200. दि. जै. सा., पृ. 290 201. दि. जै. सा., पृ. 283 202. दि. जै. सा., पृ. 329 245 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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