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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
की। दीक्षा के पश्चात् सिद्धान्त ग्रंथों के स्वाध्याय का आपने लक्ष्य बनाया, और जैनदर्शन के उच्चकोटि के ग्रंथों का पारायण किया। 4.9.39 आर्यिका पार्श्वमतीजी (संवत् 2029)
आप पाणूर (उदयपुर) निवासी श्री हुकमचंद जी नरसिंहपुरा की सुपुत्री हैं, आपके पति श्रीपाल जैन 'कूड' के निवासी थे। संवत् 2024 फाल्गुन शुक्ला 2029 को पारसोला में क्षुल्लिका दीक्षा तथा कार्तिक शुक्ला 2 संवत् 2029 में सम्मेदशिखर पर आर्यिका दीक्षा श्री विमलसागरजी से ग्रहण की। आप बहुत ही स्वाध्याय प्रिय जप तप में लीन शांत प्रवृत्ति की महाश्रमणी हैं।।92 4.9.40 आर्यिका सिद्धमतीजी (संवत् 2029)
आपका जन्म संवत् 1971 वैशाख शुक्ला पूर्णिमा को जयपुर के श्री केशरीमल जी के यहां हुआ। कार्तिक शुक्ला 12 को जयपुर में ही आचार्य धर्मसागर जी से आर्यिका दीक्षा ली। आप कठोर तपस्विनी हैं, समय-समय पर 10-10 उपवास करती रहती हैं।193
4.9.41 आर्यिका श्रुतमतीजी (संवत् 2031)
आपका जन्म कलकत्ता में 14 अगस्त 1947 को हुआ आपके पिता श्री फागूलाल जी वर्तमान में आचार्य श्रुतसागर जी महाराज के नाम से विख्यात हैं, बचपन में ही धार्मिक प्रवृत्ति होने से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत तथा दूसरी प्रतिमा ग्रहण करली, साथ ही विशारद एवं शास्त्री की भी परीक्षाएँ दी। भगवान महावीर के 2500वें निर्वाण दिवस के दिन दिल्ली में आचार्य धर्मसागर जी महाराज से जिनदीक्षा अंगीकार की। आप वर्तमान में श्री आदिमती माताजी के पास सतत स्वाध्याय व तप में संलग्न है, आप संस्कृत, न्याय, व्याकरण की अध्येता धर्मप्रभाविका विदुषी साध्वी
4.9.42 आर्यिका समयमतीजी (संवत् 2032)
आपका जन्म सन् 1921 में कर्नाटक प्रान्त के बेलगांव जिले के आकोला ग्राम में हुआ। आपने अपने पति मुनि श्री मल्लिसागर जी, पाँच पुत्र-पुत्रियों को एवं स्वयं को जिन शासन में दीक्षित कर जैनधर्म को एक बहुत बड़ी भेंट दी है। प्रख्यात युवा आचार्य विद्यासागर जी महाराज आपके ही पुत्ररत्न हैं। आप सबने एक साथ सपरिवार संवत् 2032 माघ शुक्ल 5 को मुजफ्फरनगर (उ. प्र.) में आचार्य श्री धर्मसागर जी म. से दीक्षा अंगीकार की। आपके त्याग का यह उत्कृष्ट आदर्श चिरकाल तक जीवन्त रहेगा।195
191. दि. जै. सा., पृ. 403 192. दि. जै. सा., पृ. 401 193. दि. जै. सा., पृ. 250 194. दि. जै. सा., पृ. 257 195. दि. जै. सा., पृ. 254
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