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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास अध्यापिका रही, पश्चात् आचार्य धर्मसागर जी म. से महावीर जी में संवत् 2025 में आर्यिका दीक्षा ली। आप कुशल प्रवचनकी एवं तपस्विनी साध्वी हैं। दशलक्षण, अठाई, सोलहकारण आदि उपवास प्रायः चलते रहते हैं।187 4.9.35 आर्यिका श्री अभयमती जी (2026) आपके पिता टिकेतनगर (बाराबांकी) के श्री छोटेलाल जी गोयल हैं, आप बाल्यकाल से ही संत सत्संग व धर्मोपदेश में रूचि रखती थीं, अतः क्रमशः ब्रह्मचर्य प्रतिमा, पांचवी प्रतिमा, सातवीं प्रतिमा पर आरूढ़ होती हुई संवत् 2021 को क्षुल्लिका पद पर स्थित हुईं, इस उपलक्ष में आपने अपनी ओर से 'श्रावकाचार' ग्रंथ प्रकाशित करवाया। हैदराबाद में आचार्य धर्मसागरजी से आर्यिका दीक्षा लेकर आप ज्ञानमती माताजी की शिष्या बनीं। आप अपना अधिकांश समय धर्मध्यान शास्त्र-स्वाध्याय में व्यतीत करती हैं आपने आचार्यों द्वारा रचित कई ग्रंथों के पद्यानुवाद किये तथा छोटी-छोटी 10-15 पुस्तकें लिखीं।188 4.9.36 आर्यिका श्री विमलमतीजी (संवत् 2026) आप अडंगाबाद (बंगाल) के श्री छगमल जी खण्डेलवाल के यहां अवतरित हुईं, विवाह के पश्चात्, आपको 3 पुत्र व 3 पुत्रियां हुईं। गुरू का सुयोग मिलने पर संवत् 2026 को सुजानगढ़ (राजस्थान) में आचार्य विमलसागर जी से क्षुल्लिका दीक्षा व तदनन्तर आचार्य धर्मसागर जी म. से आर्यिका दीक्षा ली। आपको णमोकार आदि मंत्रों का विशिष्ट ज्ञान है। तेल, दही आदि रसों का त्याग कर आप तपस्विनी के रूप में भी प्रसिद्ध हुई हैं।189 4.9.37 आर्यिका श्री शांतिमतीजी (संवत् 2024) आर्यिका शांतिमतीजी 'यथा नाम तथा गुण' की उक्ति को अपने जीवन में चरितार्थ कर साधना के मार्ग पर अग्रसर हैं। आपका जन्म हमेरपुर में श्रीमान् अम्बालाल जी बड़जात्या के यहां तथा विवाह टोडारायसिंह निवासी गुलाबचन्दजी पाटनी से हुआ, आपके तीन सुपुत्रियां और दो सुपुत्र हैं, सब तरह से संपन्न होकर भी अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति की ललक बनी रही। आर्यिका इंदुमतीजी के संसर्ग से दूसरी फिर पांचवीं और फिर सातवी प्रतिमा धारण कर अंत में श्री सन्मतिसागरजी के श्रीमुख से मृगशिर कृ. 6 के शुभ दिन टोडारायसिंह में आर्यिका दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा के पश्चात् त्याग, तप में आप उत्तरोत्तर आगे से आगे बढ़ रही हैं ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय, उपदेश के द्वारा स्वपरकल्याण में निरत हैं।190 4.9.38 आर्यिका शान्तिमतीजी (संवत् 2029 ): बाल्यवय से ही धर्म प्रवृत्ति संपन्न इस बालिका को जन्म देने का सौभाग्य सांगली (महाराष्ट्र) की भूमि को प्राप्त हुआ। आपने सम्मेदशिखर पर आचार्य विमलसागरजी से संवत 2029 कार्तिक शुक्ला 2 को आर्यिका दीक्षा धारण 187. दि. जै. सा., पृ. 247 188. दि. जै. सा., पृ. 246 189. दि. जै. सा., पृ. 249 190. दि. जै. सा., पृ. 291 |242 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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