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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास चैत्र शुक्ला 4 संवत् 2018 के दिन 'सीकर' में आचार्य श्री के ही चरणों में पावन प्रव्रज्या का पंथ स्वीकार किया। आप अनेकों भव्य जीवों को सत्पथ दर्शाती हुई संयम मार्ग पर अग्रसर हैं। 175 4.9.24 गणिनी श्री विजयमती माताजी ( संवत् 2019 ) बीसवीं शताब्दी की सर्वप्रथम गणिनी पदालंकृता माताजी श्री विजयमतीजी का जन्म संवत् 1984 में ग्राम कामा (जि. भरतपुर राजस्थान) निवासी संतोषीलाल जी खंडेलवाल जैन की धर्मपत्नी चिरोंजीबाई की कुक्षि से हुआ । अल्पवय में ही विवाह और वैधव्य के पश्चात् आप चन्दाबाई बालाश्रम में प्रविष्ट हो गईं, वहां रहकर बी. ए., बी. टी., साहित्यरत्न, विशारद एवं न्यायतीर्थ किया, साथ ही चित्रकला, संगीत, नाटक, हस्तकला, अध्यापन आदि प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति की। आखिर 35 वर्ष की उम्र में नशियां जी (आगरा) में आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज के कर-कमलों से चैत्र कृष्णा 3 संवत् 2019 में आर्यिका के रूप में दीक्षित हुईं। आपका प्रवचन, भाषा की प्राञ्जलता, भावों की पवित्रता विचारों की स्पष्टता से युक्त सरल एवं सयुक्तिक होता है, आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, ऊर्दू, तमिल आदि भाषाओं में धाराप्रवाह बोलती हैं। प्राचीन तमिल भाषा में निबद्ध ताड़पत्र पर अंकित कई ग्रंथों का आपने हिंदी में रूपांतरण किया है। अन्य भी आप द्वारा लिखित ग्रंथ इस प्रकार हैं (1) महिपाल चरित्र (2) प्रथामानुयोगदीपिका (3) तामिलतीर्थ दर्पण (4) अमृतवाणी (5) तत्त्वदर्शन (6) जिनदत्त चरित्र ( 7 ) सिद्धचक्र पूजातिशय प्राप्त श्रीपाल चरित्र ( 8 ) अहिंसा की विजय (9) कथा मञ्जरि (10) कथा सुमन ( 11 ) शील की महिमा (12) विमल पताका (23) आत्मानुभव ( 14 ) नीति वाक्यामृतम् (15) निजानन्द पीयूष ( 16 ) जिन भक्ति से मुक्ति ( 17 ) निजावलोकन (18) जैनधर्म और भक्ति पीयूष ( 19 ) आत्म निर्झर ( 20 ) नारी वैभव ( 21 ) आत्म पीयूष (22) आराधना समुच्चय ( 23 ) प्रतिज्ञा ( 24 ) पुनर्मिलन (25) उन्नति का सोपान (26) जैन ज्ञातव्य प्रश्नोत्तरी ( 27 ) मुक्ति का सोपान (28) सच्चा कवच ( 29 ) चतुर्विंशति स्तोत्र की टीका (3) आत्म चिन्तन (31) तजो मान करो ध्यान ( 32 ) कुन्दकुन्द शतक (33) उद्बोधन (34) ओमप्रकाश कैसे बना सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य सन्मतिसागर (35) छिटक रही अंकलीकर चन्द्रिका ( 36 ) शीतलनाथ विधान (37) अमृताशीति (38) मूलाराधना (39) अंतिम दिव्य देशना (40) दिव्य देशना (41) गुरूवाणी (42) 75 प्रश्नोत्तरमाला (43) आ. कुन्दकुन्द स्वामी जीवन परिचय एवं पूजा आरती ( 44 ) गुरूपूजा एवं आरती (45) जिनवाणी की झलक (46) जिनधर्म रहस्य ( 47 ) तपस्वी सम्राट् आचार्य श्री सन्मतिसागर जी महाराज का अभिनन्दन ग्रन्थ का संपादन (48) जीवन ज्योति आदि । समय-समय पर पत्रिकाओं में लेख, कथा कहानी आगमानुसार छपते रहते हैं। आपकी प्रेरणा से पांडीचेरी, पनरौटी, मद्रास, बड़नगर, बड़वानी ( पार्श्वगिरि) आदि क्षेत्रों में पंचकल्याणक एवं वेदी की प्रतिष्ठा हुई, कई स्थान जैसे- तिरूमुनिगिरि, करन्दै ( अकलंकवस्ती) पोन्नूरमले, बंगाल, तिरूपति कौन्ड्रम, मुदलूर, मलयनूर, बड़तिल, वेलियमल्लूर, तिरूपणामूर, वेन्निपाकम्, वन्देवासी, सल्लुके आदि के मंदिरों के जीर्णोद्धार हुए। इसके अतिरिक्त मुंबई में औषधालय एवं त्यागी निवास, पोन्नूरमलै में त्यागी भवन, यात्री निवास आदि अनेक धर्म कल्याणकारी रचनात्मक कार्य भी आपकी प्रेरणा से हुए । आपके द्वारा कई दीक्षार्थी संघ में तैयार हुए, उनमें प्रमुख हैं - क्षुल्लिका कुलभूषणमती जी ( वर्तमान में आर्यिका हैं), आर्यिका विमलप्रभा माताजी, आर्यिका विजयप्रभा माताजी, आर्यिका विनयप्रभा माताजी, सप्तम 175. दि. जै. सा. पृ. 192 Jain Education International 238 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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