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________________ दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ प्रतिमाधारिणी ब्र. गुलकंदीबाई (गणिनी विजयमती माताजी की ज्येष्ठा भगिनी), ब्र. पद्मप्रभाजी, पंचम प्रतिमाधारिणी ब्र. राजकुमारीजी, दो प्रतिमाधारिणी ब्र. रानी कुमारी। आपकी अद्भुत तपस्या, कार्यक्षमता एवं अभूतपूर्व प्रतिभा के कारण आप गुरूप्रदत्त अनेक पदों से अलंकृत हुईं, जैसे-गणिनी, सिद्धान्त विशारदा, जिनधर्मप्रभाविका, आर्यिका रत्न, ज्ञान चिन्तामणि, समाधिकल्पद्रुम, रत्नत्रय हृदय सम्राट्, दीर्घतपस्विनी आदि। इस प्रकार आपका जीवन विशिष्ट संयम की गरिमा से मंडित रहा है। माताजी का विस्तृत परिचय 'प्रथम गणिनी 105 आर्यिका श्री विजयमती माताजी अभिनन्दन ग्रंथ में वर्णित है। 76 4.9.25. आर्यिका श्री श्रेयांसमतीजी (संवत् 2021) आपका जन्म संवत् 1982 पूना में श्रीमान् दुलीचन्दजी खण्डेलवाल (बड़जात्या गोत्र) में तथा विवाह मूलचन्द्र जी पहाड़े से हुआ। पति मुनि श्री श्रेयांससागरजी का अनुगमन कर संवत् 2021 में आप भी आचार्य शिवसागर जी म. के चरणों में महावीर जी तीर्थ स्थल पर दीक्षित हुईं। आपने राजस्थान के प्रांतों में विचरण कर धर्मप्रभावना की है। स्वयं ने भी साधना के कठोर मार्ग पर चलते हुए तेल, दही, घी, नमक तक का त्याग किया हुआ है। 4.9.26. आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी (संवत् 2021) वि. संवत् 1986 रीठी (जबलपुर, म. प्र.) में गोलापूर्व परिवार के सद्गृहस्थ पिता श्री लक्ष्मणलाल जी सिंघई एवं माता मथुराबाई की पांचवीं संतान के रूप में इनका जन्म हुआ। प्रसिद्ध संत श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी के निकट संपर्क से संस्कारित सुमित्रा जी वैधव्य के बाद सागर महिलाश्रम में 12 वर्ष प्रधानाध्यापिका रही पश्चात् अतिशय क्षेत्र पपौरा में सन् 1984 में आर्यिका दीक्षा धारण की। इन्होंने जिनवाणी की सेवा का व्रत ग्रहण कर अब तक करीब 35 ग्रंथों की टीका, रचना, संकलन व संपादन किया। इनमें प्रमुख रूप से नेमिचन्द्र विरचित त्रिलोकसार की हिन्दी टीका, भट्टारक सकलकीर्ति विरचित "सिद्धान्तसार दीपक" की हिन्दी टीका, यतिवृषभाचार्य विरचित 'तिलोयपण्णत्ती की सचित्र हिन्दी टीका (3 खंडों में), इन दुरूह ग्रंथों का प्राकृत से अनुवाद कर जिस नवीन परम्परागत रूप में इन्होंने प्रस्तुत किया है, वह वस्तुतः सराहनीय है इसके अतिरिक्त आचार्य महावीरकीर्ति स्मृति ग्रन्थः एक अनुशीलन, जैनाचार्य शांतिसागर जी म. का जीवन वृत्त, वत्थुविज्जा आदि ग्रंथ भी प्रशंसनीय है। जन कल्याण के रूप में श्री शांतिवीर गुरूकूल जोबनेर, दिगंबर जैन महावीर चैत्यालय, जिनमंदिर जीर्णोद्धार, उदयपुर में श्री शिवसागर सरस्वती भवन, दिगंबर जैन धर्मशाला टोडारायसिंह का नवीनीकरण एवं अशोकनगर आपके सद् प्रयत्नों का फल है। 78 4.9.27. आर्यिका श्री अरहमती जी (संवत् 2021) आप वीरगांव के श्री गुलाबचन्द्र जी खण्डेलवाल की सुपुत्री हैं। विवाह के बाद वैधव्य जीवन से विरक्ति की 176. पत्राचार द्वारा प्राप्त सामग्री के आधार पर, लेखिका-आर्यिका विमलप्रभा माताजी 177. दि. जै. सा., पृ. 201 178. तिलोयपण्णत्ती, भूमिका, चन्द्रप्रभ दि. जैन अतिशय क्षेत्र, देहरा, तिजारा (राजस्थान) त. सं. 1997 ई. 239 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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