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________________ दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 4.8.32 आर्यिका प्रतापश्री (वि. संवत् 1688 ) काष्ठासंघ माथुरान्वय पुष्करगण भट्टारक श्री सहस्त्रकीर्ति की शिष्या आर्यिका प्रतापश्री ने सपीदोनगर में संवत् 1688 में उत्तमक्षमादि दशलक्षणी धर्म यंत्र बनवाया । ताम्रपत्र पर अंकित यह यंत्र एवं लेख नया मन्दिर धर्मपुरा दिल्ली में है। भट्टारक संप्रदाय के लेखक डॉ. जोहरापुरकर ने इन्हीं आर्या की चरणपादुका संवत् 1688 में होने का उल्लेख लेखांक 610 में किया है। 146 आर्यिका प्रतापश्री की समाधि सपीदो नगर में संवत् 1688 की बनी हुई है। इस प्रतिमालेख की हस्तलिखित प्रति अति जीर्ण अवस्था में श्री अगरचन्द नाहटा संग्रह में है। 147 4.8.33 आर्यिका पासमती (वि. संवत् 1787 ) यह लेख बलात्कार गण कारंजा शाखा का है। इसमें उल्लेख है कि मूलसंघ के श्री धर्मचंद्र देव के शिष्य भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति जब सूरत के वासुपूज्य चैत्यालय में विराजमान थे, तब संवत् 1787 की भाद्रपद शुक्ला 5 को आर्यिका पासमती के लिये श्रीचन्द विरचित 'कथाकोष' की एक प्रति लिखवाई | 148 4.8.34 शिखर श्री (वि. संवत् 1816 ) संवत् 1816 देवलग्राम के श्रीचन्द्रप्रभु चैत्यालय में भट्टारक श्री नरेन्द्रसेन के शिष्य श्री शांतिसेन की शिष्या आर्यिका शिखर श्री जी ने अपने शिष्य पं. वानार्शिदास के लिए हरिवंशदास की एक प्रति लिखी। यह प्रति नागपुर सेनगण मन्दिर 20 में मौजूद है। 149 4.8.35 शांतमती और इन्दुमती (वि. संवत् 1828 ) संवत् 1828 बलात्कारगण कारंजाशाखा के आचार्य धर्मचन्द्र भट्टारक के शिष्य वृषभ ने शांतमती और इन्दुमती आर्यिका के आग्रह पर “रविव्रत कथा " लिखी । तथा संवत् 1830 की ज्येष्ठ कृष्णा 5 को "निर्दोषसप्तमी व्रत" का उद्यापन लिखा । 150 योगदान : दिगम्बर परम्परा में उत्तर भारत की इन श्रमणियों ने जैनधर्म और संस्कृति के विकास एवं संरक्षण के लिए अनेक उल्लेखनीय कार्य किये हैं। प्राचीन शास्त्रों की सुरक्षा एवं प्रचार के लिए उनकी अधिकाधिक हस्तलिखित प्रतियाँ तैयार करवाकर वितरित करवाई, नये मंन्दिर निर्माण, प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार, शास्त्रदान, औषधदान हेतु महिलाओं को प्रेरित किया । इतिहास सुरक्षा के लिए ताम्रपत्र, शिलालेख आदि का लेखन कार्य करवाया । अनेकों ने सल्लेखना - समाधि ग्रहण कर स्वर्गारोहण किया। 146. भट्टारक संप्रदाय, पृ. 234 147. जैन सिद्धान्त भास्कर, षण्मासिकी, पृ. 16 148. (क) श्री रायबहादुर, श्री हीरालाल जी संपादित, मध्यप्रान्त और बरार के हस्तलिखितों की सूची, पृ. 727 (ख) डॉ. वि. जोहरापुरकर, भट्टारक संप्रदाय, लेखांक 159, पृ. 61 149. वही, लेखांक 73 150. वही, लेखांक 181, पृ. 66-67 Jain Education International 229 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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