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________________ जैन श्रमणियों का बहद इतिहास 4.8.27 विनयश्री (वि. संवत् 1595) भट्टारक श्री धर्मचन्द्र की शिष्या विनयश्री आर्यिका को पढ़ने के लिये कवि सिंह कृत "पज्जुणचरिउ" की पाण्डुलिपि साह सुरजन एवं उसकी धर्मपत्नी सुनावत ने संवत् 1595 में भेंट की थी। धर्मचन्द्र अपने युग के बड़े भारी संत एवं प्रभावक आचार्य थे, इन्होंने जैन साहित्य एवं संस्कृति की भारी सेवा की थी, इनकी और भी अनेक आर्याएं थीं।14 4.8.28 आर्यिका विजयश्री (वि. संवत् 1612) सं. 1612 में सोनी गोत्रीय बाई तील्हू ने 'नवकार श्रावकाचार' की प्रतिलिपि करवाकर आर्यिका विजयश्री को भेंट की थी।142 4.8.29 आर्या चारित्रश्री (वि. संवत् 1621) संवत् 1621 में मूलसंघ बलात्कार गण सरस्वती गच्छ कुन्दकुन्दाचार्य के अन्वय में भट्टारक श्री पद्मनंदि देव की परम्परा में भट्टारक श्री शीलभूषण की शिष्या आर्या श्री चारित्रश्री का उल्लेख है। उन्होंने बाई हीरा तथा चंदा के पठनार्थ "यशोधर चरित्र" अलवर निवासी पंडित वीणासुत से लिखवाया था।143 4.8.30 आर्यिका हरषमती (वि. संवत् 1641) संवत् 1641 कार्तिक कृष्णा 5 को बलात्कार गण कारंजाशाखा के भट्टारक देवेन्द्रकीर्ति ने एरंडवेल नगर के श्री धर्मनाथ चैत्यालय में हरषमती आर्यिका के लिए “अम्बिकारास" की एक प्रति लिखी। 44 4.8.31 अजीतमति (वि. संवत् 1650) आपने अपने को बाई अजीतमति लिखा है, आप भट्टारक वादिचन्द्र (16वीं-17वीं शताब्दी) की प्रमुख शिष्या थीं, उन्हीं के संघ में ब्रह्मचारिणी साध्वी के रूप में रहती थी, अंतिम समय में आप क्षुल्लिका बनी थी। आचार्य विद्यानन्दजी के कथनानुसार उनके जन्म का अनुमान संवत् 1610 के आसपास माना जाता है। उनके स्वयं के हाथ से लिखा हुआ एक गुटका है जो संवत् 1650 का है। इस गुटके में उनकी संग्रहित रचनाएँ -(1) आध्यात्मिक छंद (2) षट्पद (3) भक्तिपरक 7 पद (4) इतिहास परक घटनाओं का वर्णन आदि। इनकी सभी रचनाएँ स्वान्तः सुखाय एवं आत्म-रस से परिपूर्ण हैं। ये हुंबड़ जाति के श्रावक कान्ह जी, जो अपने समय के प्रभावशाली व्यक्ति थे एवं सागवाड़ा के रहने वाले थे; उनकी पुत्री थी। 45 141. 'कासलीवाल', खंडेलवाल जैन समाज का बृहद् इतिहास, पृ. 150 142. (क) राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों की ग्रंथ सूचि भाग-4, पृ. 65 (ख) डॉ. कासलीवाल, खंडेलवाल जैन समाज का बृहद् इतिहास, पृ. 109 143. डॉ. वि. जोहरापुरकर, भट्टारक संप्रदाय, लेखांक सं. 309, पृ. 127 144. वही, 109, पृ. 51 145. डॉ. कासलीवाल, दृष्टव्य- बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि, श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 1984 ई. 228 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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