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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 4.8.28 आर्यिका आगमश्री (संवत् 1483) इनका उल्लेख बलात्कारगण दिल्ली जयपुर शाखा लेखांक 244 निषीदिका पर उल्लिखित है। ये नन्दिसंघ के कुन्दकुन्द आचार्य के अन्वय में पद्मनंदि के शिष्य भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेव की शिष्या थी। इनकी समाधि बनाने का उल्लेख प्राप्त होता है। 32 4.8.19 आर्यिका जैतश्री एवं विमलश्री (संवत् 1497) संवत् 1497 काष्ठसंघ के आचार्य अमरकीर्ति द्वारा रचित 'षट्कर्मोपदेश' नामक ग्रन्थ की एक प्रति ग्वालियर के तेवर या तोमरवंशी राजा वीरमदेव के राज्य में अग्रवाल साहू जैतू की धर्मपत्नी सरे ने लिखाकर आर्यिका जैतश्री की शिष्यणी आर्यिका विमलश्री को समर्पित की थी। 4.8.20 आर्यिका संयमश्री (वि. संवत् 1513) वि. संवत् 1513 की चौवीसी मूर्ति मूलसंघ आर्यिका संयमश्री के श्रेयार्थ घोघा में प्रतिष्ठित की गई थी। यह अभिलेख बलात्कार गण-सूरत शाखा का है।।34 4.8.21 आगमश्री “क्षुल्लिका" (वि. संवत् 1531) __संवत् 1531 फाल्गुन शु. 5 को श्री मूलसंघ के भट्टारक श्री जिनचन्द्र सिंहकीर्ति देव की शिष्या आगमसिरि क्षुल्लिका द्वारा कलिकुंडयंत्र करवाने का उल्लेख है। 4.8.22 आर्यिका रणमती (वि. संवत् 1566) अभिमान मेरू महाकवि पुष्पदंत ने "जसहरचरिउ" की अपभ्रंश भाषा में रचना की थी, उसकी टीका आर्या रणमती ने संस्कृत में लिखी। इसका रचना समय सन् 1509 माना जाता है। "यशधरचरित्र" की खंडित प्रति दिल्ली पंचायती मंदिर के शास्त्र भंडार में है। यशोधरचरित्र की यह टिप्पणी की प्रति सं. 1566 मृगसिर कृष्णा दसमी बुधवार को लिखी गई है। टिप्पणी के अंत में निम्न पुष्पिका वाक्य लिखा हुआ है :- “इति श्री पुष्पदंत यशोधर काव्य को लिखो आर्यिका श्री रणमति कृत सम्पूर्णम्"136 4.8.23 आर्या रत्नमती (16वीं सदी का मध्यकाल) आर्या रत्नमति ने संस्कृत भाषा में रचित "सम्यक्त्व कौमुदी" ग्रंथ का गुजराती पद्यानुवाद किया था, जो "समकीतरास" के नाम से प्रसिद्ध है, वह कुल 89 पन्नों का है। इसके बीच में लघु कथाएँ भी हैं, उसमें समकीत 132. बिजौलिया, अनेकान्त मासिक अंक 11, पृ. 365 133. शास्त्री परमानंद का लेख, दृष्टव्य-ब्र. पं. चंदाबाई अभिनंदन ग्रंथ, पृ. 482 134. डॉ. वि. जोहरापुरकर, भट्टारक संप्रदाय, पृ. 170, लेखांक 429 135. नाहटा अगरचंद, प्रतिमा लेख संग्रह, दृष्टव्य-जैन सिद्धान्त भास्कर, 'आरा' पृ. 16 136. शास्त्री परमानन्द का लेख, दृष्टव्य-ब्र. पं. चन्दाबाई अभिनंदन ग्रंथ, पृ. 479-81 | 226 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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