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________________ दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ माणिक्यदेव के शिष्य सोमदेव की मूर्ति प्रतिष्ठापित करने का उल्लेख है। साथ ही संघसहित मूर्ति को वंदना भी करती है ऐसा वर्णित है। 27 यह लेख 12वीं शताब्दी की जैनलिपि में लिखा हुआ है। 4.8.14 आर्या रत्नसिरि एवं आर्या कुलिकी (13वीं सदी) आर्या रत्नसिरि भट्टारक श्री गुणकीर्ति देव, श्री यश:कीर्ति, श्री मलयकीर्ति तथा श्री गुणभद्र की शिष्या थीं। इनकी शिष्या कुलिकी ने ताम्रपत्र में एक यंत्र लिखवाया था। 28 4.8.15 अर्जिका गुणश्री एवं विमलश्री (संवत् 1428) दिल्ली नया मन्दिर कटघर की मूर्तियों में आदिनाथ की मूर्ति पर "संवत् 1428 ज्येष्ठ सुदि 12 का लेख है। उसके अनुसार इस मूर्ति के प्रतिष्ठापक आचार्य विमलसेन भट्टारक देवसेन के शिष्य थे, वे काष्ठासंघ, माथुरान्वय शाखा से सम्बंधित थे। अर्जिका गुणश्री और विमल श्री इन्हीं विमलसेन की शिष्या थी, यह बात उसी मंदिर की एक अन्य मूर्ति के लेख से प्रकट होना लिखा है। 29 स्व. कामताप्रसाद जी ने किस मूर्ति के लेख पर आर्यिकाओं का नाम पढ़ा है, मालूम नहीं। हमने वहाँ की प्रत्येक मूर्ति का शिलालेख देखा किंतु ये नाम हमारे पढ़ने में नहीं आये। उक्त मंदिर तेरापंथ दिगम्बर शाखा का है, इस शाखा में तीर्थंकर की मूर्ति पर 'आर्या' का नाम अंकित करने का कट्टर विरोध देखा गया है। 4.8.16 आर्या जेतक्षणी एवं संयम श्री (वि. संवत् 1473) आर्या जेतक्षणी और संयम श्री का उल्लेख काष्ठा संघ के भट्टारक श्री सहस्रकीर्ति देव के शिष्य श्री गुणकीर्ति देव के शिष्य यशकीर्ति देव की शिष्या के रूप में हुआ है। आर्या जेतक्षणी और आर्यिका संयमश्री ने श्री महावीर स्वामी की धातु प्रतिमा जो पद्मासन में स्थित है और जिसकी ऊंचाई 5.4" की है, वह वि. संवत् 1473 में प्रतिष्ठित कराई थी।130 4.8.17 अर्जिका विमलमती (संवत् 1479) तोमरवंशीय वीरमदेव के राज्यकाल में संवत् 1479 में जौतु की स्त्री 'सरो' ने 'षट्कर्मोपदेश' की प्रति लिखवाकर अर्जिका विमलमती को पूजा-महोत्सव के साथ समर्पित की। यह प्रति आमेर के शास्त्र भंडार में विद्यमान है। इस उल्लेख से सिद्ध होता है कि जैन श्राविकाएं भी श्रुतज्ञान की रक्षा के कार्य बड़े उत्साह एवं आदर के साथ करती थीं। 127. शिलालेख संख्या 418, जैन शिलालेख संग्रह, भा. 3, पृ. 224 128. प्रकाशचन्द जैन-मध्यकालीन मालवा में जैनधर्म, शोध-प्रबन्ध (अप्रकाशित) शाजापुर प्राच्य विद्यापीठ 129. दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि, पृ. 122 130. प्रशस्ति-संवत् 1473 जेष्ठ सुदी 15 बुध दिने श्री काष्ठासंघे भट्टारक श्री सहस्रकीर्ति देवा तत्प? श्री गुणकीर्तिदेवा तत् शिष्य यशकीर्ति देवा आर्या जेतक्षणी आर्या संजमश्री निजकर्मक्षयार्थं प्रतिष्ठितम्।-जैन कमलकुमार, जिनमूर्ति प्रशस्ति लेख, पृ. 27 131. पारख श्री जयंतिलाल, म. प्र. के दिगम्बर जैन तीर्थ, पृ. 22 225 Jain Education International For Prib e rsonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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