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________________ 4.8.9 आर्यिका धर्मश्री (संवत् 1208) देवगढ़ (झांसी) के पुरातत्त्व में दिगम्बर आर्यिकाओं के कई उल्लेख प्राप्त होते हैं। सं. 1208 के लेख में दिगम्बर गुरूओं की भक्त " आर्यिका धर्मश्री" का उल्लेख है। संवत् 1208 में वहां आचार्य जयकीर्ति प्रसिद्ध थे। उनके शिष्यों में भावनन्दि मुनि तथा कईं आर्यिकाएँ थी। संख्या 222 की मूर्ति पर भी आर्यिका का नाम चतुर्विध संघ के साथ जुड़ा हुआ है। 122 4.8.10 अर्जिका मेकुश्री / मेरूश्री (संवत् 1215 ) खजुराहो (छतरपुर, म.प्र.) के श्री शांतिनाथ मंदिर में स्थित जिनमूर्ति के पादपीठ पर अर्जिका मेकुश्री का नाम उति है। यह आर्या देशीगण पंडित श्री राजनंदि के शिष्य पंडित श्री भानुकीर्ति की शिष्या थी । जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास लेख संवत् 1215 (ई. 1158) का नागरी लिपि व संस्कृत भाषा में है । 1 23 इस लेख में उल्लेखित अर्जिका कुश्री - सम्भवतः निम्न शिलालेख में उल्लेखित मेरू श्री ही हो। डॉ. कस्तूरचंद कासलीवाल ने खजुराहो के ही दक्षिण-पूर्व के जैन मंदिर नं. 8 में चन्द्रप्रभ भगवान की प्रतिमा की पीठिका पर इसी संवत् में भानुकीर्ति की शिष्या 'अर्जिका मेरू श्री' का उल्लेख किया है। यह नाम अधिक उपयुक्त लगता है। इस शिलालेख को उन्होंने चंदेल राजाओं से संबंधित माना है। 124 4.8.11 णाणश्री (संवत् 1223 ) मालपुरा के मण्डी के मन्दिर में वि. संवत् 1223 में प्रतिष्ठित एक प्रतिमा है जिस पर माथुर संघ के पंडित कनकचंद्र की शिष्या 'णाणश्री' और प्रतिष्ठाचार्य वीरनाथ का उल्लेख किया है। 25 प्रतिमा की प्रतिष्ठापना के समय 'णाणश्री' संघस्थ साध्वियों के साथ वहां उपस्थित हुई थी। 4.8.12 आर्यिका ज्ञानश्री (संवत् 1234 ) आर्यिका ज्ञानश्री का उल्लेख मालवा के जैन अभिलेख में प्रकाशचन्द्र जैन ने अपने शोध-प्रबन्ध 'मध्यकालीन मालवा में जैनधर्म' में किया है। यह अभिलेख संवत् 1234 का है। इसमें 'धर्मश्री' का भी नाम है 1 126 4.8.13 आर्या मदन श्री ( संवत् 1246 ) सं. 1246 के प्राकृत भाषा में अंकित अजमेर (राज.) के शिलालेख पर आर्यिका मदन श्री द्वारा आचार्य 122. आ. देशभूषण, भ. महावीर और उनका तत्त्व-दर्शन, अ. 4, पृ. 436 123. श्री संवतु 1215 माघ सुदि 5 रवौ देशीगणे पंडितः श्री राजनंदि तत् सिष्य पंडितः श्री भानुकीर्ति अर्जिका मेकुश्री अभिनन्दन स्वामिनं नित्यं प्रणमंति। -अभिलेख - 100, 'जोहरापुरकर', जै. शि. सं., भाग 5 123. मध्यप्रदेश के दिगंबर जैन तीर्थ, चेदि जनपद, पृ. 108 125. डॉ. कासलीवाल, खंडेलवाल जैन समाज का बृहद् इतिहास, पृ. 162 126. संवत् 1234 वर्षे...... श्री मूलसंघे भट्टारक श्री धर्मकीर्ति देव सेणदेव अर्जिका नाणीशिरि .......लि धर्मशिरि प्रणमति नित्यं कर्मक्षयार्थं कारापिता । पृ. 419 (अप्रकाशित) प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर से प्राप्त Jain Education International 224 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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