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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
अंकित है।'' देवगढ़ के जैन मंदिर नामक ग्रंथ में अर्जिका लवनासर नाम है।" जो लवणश्री का ही सूचक है यह लेख संस्कृत भाषा और नागरी लिपि में उल्लिखित है।
4.8.4 सोना आदि आर्याएँ ( 12वीं सदी )
देवगढ़ जिला झांसी (उ. प्र.) में और भी अनेक ऐसे शिलालेख हैं, जिन पर आर्यिकाओं के नाम अंकित हैं। वहां के मंदिर नं. 16 में आर्यिका सोना, आर्यिका सिरिमा, आर्यिका पद्मश्री, संयमश्री, रत्नश्री, ललित श्री, संयमश्री, जयश्री . आदि नाम उट्टङ्कित हैं। ये शिलालेख संस्कृत भाषा और नागरी लिपि में होने से 12वीं सदी के प्रतीत होते हैं। 17
4.8.5 अर्जिका गणी ( 12वीं सदी)
देवगढ़ के मंदिर में ही पाँच इंच लंबी खड्गासन की मूर्ति पर 'अर्जिका गणी....' उल्लिखित है, संभव है ये गणिनी साध्वी हो, संवत् अज्ञात है । 18
4.8.6 अर्जिका इमदुवा ( संवत् 1200 )
उक्त मंदिर में तीन फुट साढ़े 8 इंच की ऊँची बैठी हुई प्रतिमा सं. 1200 के लगभग की है, इसमें उक्त आर्यिका का नाम अंकित है । "
4. 8.7 अर्जिका म...... (संवत् 1201 )
देवगढ़ (उ. प्र. ) किले में ढाई इंच...... लंबी ऋषभनाथ जी की पद्मासन स्थित प्रतिमा में प्रतिष्ठात्री के रूप में उक्त आर्यिका का नाम मिट जाने से पढ़ा नहीं जाता। यह संवत् 1201 का अभिलेख है । 1 20
दिगम्बर परम्परा के सिद्धान्त से प्रतिकूल आर्यिका का प्रतिष्ठात्री के रूप में नाम अंकित होना एक नवीनता है।
4.8.8 आर्यिका नवासी ( संवत् 1207 )
देवगढ़ के ही जैन मंदिर नं. 4 के दाहिने स्तम्भ पर संवत् 1207 की दो पंक्ति है, उसमें आचार्य जयकीर्ति के साथ अर्जिका नवासी का नाम अंकित है। 1 21
115. अभिलेख 49-50 - डॉ. विद्याधर जोहरापुरकर, जैन शिलालेख संग्रह, भाग 5, पृ. 117
116. विश्वम्भरदास गार्गीय, देवगढ़ के जैन मंदिर, नं. 107
117. शिलालेख संख्या 310 से 369, जैन शिलालेख संग्रह, भाग 5, पृ. 117
118. वि. गार्गेय, देवगढ़ के जैन मंदिर, संख्या 32
119. वही, संख्या 30
120. वही, संख्या 52
121. वही, संख्या 25
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