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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 4.6.39 अमरचर की शिष्या आर्यिका ( 12वीं सदी)
कुन्दकुन्दू देशीयगण के अमरचर की शिष्या आर्यिका के विषय में जगवल्लू ग्राम के जैन मंदिर के पाषाण पर यह लेख उत्र्कीण है कि ये आर्यिका एक मास में आठ उपवास करती थीं, और 97 वर्ष की आयु प्राप्त कर अंत में समाधिमरण से देहोत्सर्ग किया। इनके सहपाठी श्री गुणचन्द्र भट्टारक थे।" 4.6.40 पंच कल्याणोत्सव में आर्यिकाएं (वि. संवत् 1234)
विन्ध्यगिरि पर्वत के अखण्डबागिलु के पूर्व की चट्टान पर लेख संग्रह 113 (268) पर उल्लेख है कि कुन्दकुन्दान्वय, देशीगण पुस्तकगच्छ के महाप्रभावी आचार्यों-त्रिभुवनराजगुरू भानुचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती सोमचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती-चतुर्मुख, भट्टारक देव, सिंहनन्दि भट्टाचार्य, शान्ति भट्टारकाचार्य, शान्तिकीर्ति भट्टारक देव, कनकचन्द्र मलधारिदेव और नेमिचन्द्र मलधारिदेव इन सब आचार्यों व अन्य अनेक गणों और संघों के आचार्य तथा कलियुग के गणधर 50 मुनीन्द्र व उनकी शिष्याएं-गौरश्री, सोमश्री, देवश्री, कनकश्री व शिष्यों के 28 संघों ने शक संवत् 1099 को एकत्र होकर पंच कल्याणोत्सव मनाया। लेख में संवत्सर का नाम दिया है
"हैबणन्दि संवत्सरद फाल्गुण सु. 4 श्री गोम्मटदेघर तीर्थनंद.......पञ्चकल्याण........173
कर्नाटक के शिलालेखों में अधिकांश आर्यिकाओं के पीछे "कन्ति" शब्द का प्रयोग मिलता है। गौरश्री, सोमश्री, देवश्री, कनकश्री आदि एक ही गच्छ की आर्यिकाएं थीं, संभव है, ये प्रमुखा आर्यिकाएं रही होंगी, जिन के संघ में और भी अनेकों आर्यिकाएं थीं, और वे सभी पंचकल्याणोत्सव में सम्मिलित हुई होंगी। क्योंकि जहां बड़े-बड़े आचार्य भट्टारक, गणधर मुनि उपस्थित हुए हों, वहां आर्यिकाएँ भी विशाल संख्या में उपस्थित हुई हों, यह सहज अनुमान लगता है। देवश्री कति ने कई तीर्थक्षेत्रों की वंदना भी की थी। 4.6.41 पेण्डरवाचि मुत्तव्वे (वि. संवत् 1252)
ईंगलेश्वर (विजापुर, मैसूर) शक संवत् 1117 सन् 1195 भाषा कन्नड़ में यह लेख अंकित है। इसके अनुसार ये तीर्थ चन्द्रप्रभदेव की शिष्या थीं, एवं इन्होनें समाधिमरण किया था।
4.6.42 जकौव्वे (वि. संवत् 1264)
बेलगाम (मैसूर) में सन् 1206 के लेख में होयसल राजा वीर बल्लाल के 16वें वर्ष क्षय संवत्सर के भाद्रपद कृष्णा 11 को कमलसेन की शिष्या 'जकौव्वे' के समाधिमरण का उल्लेख है। लेख में वृहस्पतिवार तथा अंत में 'श्री वीतरागाय नमो" भी उल्लिखित है। यह कन्नड़ भाषा में है। 71. अभिलेख- 3, मद्रास व मैसूर के जैन स्मारक, पृ. 280 72. (क) जैन शिलालेख संग्रह भाग-1, पृ. 373
(ख) श्रीमती जे. के. जैन, श्रवणबेल्गोला के शिलालेख, जै. सि. भास्कर, जुलाई 1946 पृ. 73-74 73. शक संवत् 1099 हेबणन्दि (हेमलम्ब) वर्ष था, शकसंवत् से विक्रम संवत् 135 वर्ष पूर्व का है। 74. अभिलेख 283, जै. शि. सं., भाग 4 75. अभिलेख-322, जै. शि. सं. भाग 4
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