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________________ दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ पुन्नागवृक्षमूलगण का उल्लेख वृक्षमूल गण के नाम से नंदि संघ की एक शाखा के रूप में भी उपलब्ध होता है, और वह यापनीय संघ का ही एक गण था।" इस उल्लेख से आर्यिका रात्रिमती कन्ति यापनीय संघ की ही आर्यिका थी । 4.6.32 आर्यिका श्रीमती गंती (वि. संवत् 1176 ) श्रवणबेलगोला में मठ के शिलालेख पर उल्लेख है कि श्रीमती गंती ने सन् 1119 में संलेखना कर समाधिमरण किया 2 आचार्य देशभूषण जी ने श्रवणबेलगोल के नं. 139 के शिलालेख में योगी दिवाकरनंदि से 'गन्ती' नामक एक भद्र महिला के दीक्षा ग्रहण कर समाधिमरण प्राप्त करने का उल्लेख किया है। उसका काल वर्णित नहीं है किंतु लेख संख्या एक होने से यह प्रतीत होता है, कि ये दोनों एक ही अर्यिका के लेख हैं। 4.6.33 मानकव्वे गन्ति (वि. सं. 1176 ) श्रवणबेलगोल मठ के उत्तर की गोशाला में मानकव्वे गन्ति का स्मारक है, जो माङ्क ब्बे गन्ती ने स्थापित कराया। स्मारक पर उत्कीर्ण लेख में मानकब्बे गन्ती को देशियगण कुन्दकुन्दान्वय के दिवाकर नन्दि की शिष्या कहा गया है। 64 दिवाकरनन्दि बड़े भारी योगी थे, वे देवेन्द्र सिद्धान्तदेव की शाखा में हुए थे। उनके दो शिष्य मलधारिदेव और शुभचन्द्रदेव सिद्धान्त मुनीन्द्र थे, श्रीमती गन्ती ने उनसे दीक्षा लेकर शक संवत् 1041 में समाधिमरण प्राप्त किया। 4.6.34 गे......गन्ति ( संवत् 1177 ) मत्तावार (कर्नाटक) में पार्श्वनाथ बस्ति के प्रांगण में एक पाषाण पर कन्नड भाषा में लिखित एक लेख जो लगभग 1120 ईसवी का है, उसमें उल्लेख है कि मरूळहळलि के जकव्वे के द्वारा प्रेषित गे......गन्ति ने मत्तवूर की बसदि में तपश्चरण करके सिद्धि प्राप्त की । उसकी स्मृति में अब्बेय माजक के पुत्र मारेय ने यह पाषाण स्थापित किया। 65 4.6.35 पोचिकब्बे (विं. संवत् 1178) चन्द्रगिरि की पार्श्वनाथ वस्ति के दक्षिण की ओर के शिलालेख में 'मार' और 'माकणव्बे' के सुपुत्र' 'एचि' व एचिगांङ्ग. की भार्या 'पोचिकब्बे' की धर्मपरायणता की स्तुति करते हुए उसके अंत में संन्यास लेकर स्वर्गारोहण का उल्लेख है। इस उल्लेख से यह सिद्ध होता है कि जीवन के अंतिम क्षणों में संन्यास और संलेखना व्रत एक 61. जै. मौ. इ. भाग 3 पृ. 191 62. लेख संख्या 351 (139), म. मै. जै. स्मा. पृ. 269 63. भ. महावीर और उनका तत्त्वदर्शन, अ. 4 पृ. 442 64. लेख संख्या 139 (351), जैन शिलालेख संग्रह, भाग 1 65. अभिलेख- 273, जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2 66. अभिलेख - 44 (118), जै, शि. सं. भाग 1 Jain Education International 213 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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