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________________ 4.6.27 ससिरमति गंती ( 11वीं सदी) इंस्क्रिपशंस ऑफ श्रवणबेलगोला लेख नं. 30 के उल्लेखानसार प्रो. श्री हीरालाल जैन ने अपने लेख में ससिरमती गंती का वर्णन करते हुए लिखा है कि वह हंसमुख स्वभाव की दृढ़ निश्चयी, गुणवती एवं महान विदुषी (आर्यिका ) थी, उसने श्रवणबेलगोल में संलेखना व्रत ग्रहण कर देह त्याग किया था। 5 4.6.28 क्किब्बे ( संवत् 1109 ) चन्दियब्बे गावुण्डि की मंत्रकी और कस्तूरी भट्टार की शिष्या, 'जक्कियब्बे' ने इस कारण संन्यास ग्रहण कर लिया कि वह 'दायतिगमती' के स्वर्गवास के समाचार को सुनकर सहन नहीं कर पाई और संसार से विरक्त हो गई। इसके पति का नाम 'एडय्य' था। जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास यह उल्लेख तीतरमाड़ (नल्लूर) के घर के निकट 117 नं. के तालाब के बांध पर पाषाण पर संस्कृत व कन्नड़ भाषा में लगभग 1050 ईस्वी ( लुई राईस) का उत्कीर्ण है। 56 4.6.29 अरसव्वे गंती ( संवत् 1152 ) आप सुराष्ट्रगण के कलनेले के श्री रामचन्द्रदेव की शिष्या थी । सोमेश्वर ग्राम में वासव मंदिर के खम्भे पर सन् 1095 के उट्टङ्कित स्मारक में आपका उल्लेख किया गया है। 57 4.6.30 वसववे गंती (वि. संवत् 1156) अनुसार आप श्री मूलसंघ के दिवाकरनंदी सिद्धान्तदेव की शिष्या थी, 1099 ईसवी में जिनालय हेतु दान दिलाने में आपका उल्लेख मिलता है। 58 मूलसंघ दिगम्बर संप्रदाय का प्राचीनतम संघ है। 1100 ईसवी के अभिलेख के यह आचार्य 'कुन्दकुन्द के द्वारा स्थापित किया गया, किंतु पट्टावलियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आचार्य माघनन्दि ने इस संघ की स्थापना की थी। चौथी और पांचवी शताब्दी के अभिलेखों के अध्ययन से मूल संघ की स्थापना ईसा की दूसरी शताब्दी में श्वेताम्बर व दिगम्बर सम्प्रदायों के अस्तित्व में आने के समय हुई। मूलसंघ की एक शाखा 'नन्दि आम्नाय' है। 59 4.6.31 आर्यिका रात्रिमती कन्ति (वि. संवत् 1165 ) आप बल्लालदेव और गणधरादित्य के समय 1108 ईसवी में मूलसंघ के पुन्नागवृक्षमूल गण की आर्यिका थीं। आपकी शिष्या 'बम्मवगुड' द्वारा मंदिर बनवाने का उल्लेख है। 50 55. जैन सिद्धान्त भास्कर पृ. 62, दिसंबर 1943 56. अभिलेख - 83, जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2 57. अभिलेख - 96, मद्रास व मैसूर के जैन स्मारक, पृ. 284 58. लेख संख्या 24, वही, पृ. 192 59. श्रीमती डॉ. राजेश जैन, मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, पृ. 90 60. अभिलेख - 250, जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2 Jain Education International 212 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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