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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 4.6.2 आर्यिका जम्बुनायगिर् (वि.सं 757)
इन्होनें भी चन्द्रगिरि पर्वत पर व्रत पालकर समाधिमरण किया था। यह शिलालेख चन्द्रगिरि की शासनवस्ति के पूर्व की और है। यद्यपि लेख में 'आर्यिका' शब्द का उल्लेख नहीं है, किंतु श्री हीरालाल जी जैन तथा श्रीमती जे. के. जैन ने अपने लेख में उन्हें 'आर्यिका'कहा है।
4.6.3 शशिमती गन्ति आर्यिका (वि. सं. 757)
चन्द्रगिरि पर्वत पर शशिमती गन्ती के संन्यास धारण कर स्वर्गगामी होने का उल्लेख है। अंत समय के उसके उद्गार कि “मुझे इसी मार्ग का अनुसरण करना है..............."; उनकी लक्ष्य के प्रति अटूट निष्ठा को अभिव्यक्त करते है। उन्होंने जान लिया कि परमात्मपद ही मेरी मंजिल है, ओर मुझे आत्म-लक्ष्य की और बढ़ना है। लेख में उसे 'व्रत शील सम्पन्ना' कहा गया है।26
4.6.4 सायिब्बे कान्तियर (वि. सं. 757)
चन्द्रगिरि पर तेरिन बस्ति के नवरंग में एक टूटे पाषाण पर सायिब्बे कान्तियर् का उल्लेख है।”
4.6.5 नन गंतियर् (वि. सं. 757)
चन्द्रगिरि पर सन् 700 में ननगंतियर् के संलेखना व समाधिमरण का उल्लेख प्राप्त होता है-8 इनकी विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हुई।
4.6.6 अनन्तामती गन्ती (वि. सं. 757)
चन्द्रगिरि पर्वत के शिलालेख में अनन्तामतीगन्ती के लिये उल्लेख है कि उन्होनें भी द्वादश तप को धारण कर कटवप्रपर्वत पर यथाविधि व्रतों का पालन किया एवं सुरलोक को प्राप्त हुईं। आप नविलूर संघ की आर्यिका थीं।" 4.6.7 सौन्दर्या-आर्या (वि. सं. 757)
चन्द्रगिरि पर ही मयूरग्राम संघ की आर्या सौन्दर्या ने कटवप्रपर्वत पर समाधिमरण किया, यह उल्लेख वहाँ के शिलालेख पर उट्टांकित है। 24. वही, भाग 1 लेख 5 (18) 25. श्रवणबेल्गोल के शिलालेखों में महिलाएँ पृ. 74 जैन सिद्धान्त. भास्कर, जुलाई 1946 26. अभिलेख 35 (76) जै. शि. संग्रह, भाग 1 पृ. 15 27. अभिलेख 227 (136) जै. शि. संग्रह भाग 1 28. लेख संख्या 76, मद्रास व मैसूर के प्राचीन जैन स्मारक, पृ. 260 29. अभिलेख 28 (98)जै. शि. संग्रह, भाग 1 30. अभिलेख 29 (108) जै. शि. संग्रह, भाग 1,
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