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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास विचारशील, तपः पूत तथा ज्ञानी कहकर स्तुति की गई है। इसके पुत्र गंधिक कुमारभट्ट ने अपनी माता कुमारमित्रा की प्रेरणा से सं. 35 (ई. 213) में वर्धमान की प्रतिमा का दान किया था। यह मूर्ति कंकाली टीले के पश्चिमी भाग में स्थित दूसरे देवप्रसाद में भग्नावशेष के रूप में प्राप्त हुई है। कुमारमित्रा संन्यासिनी थी, संन्यस्ता स्त्री का पुत्र कहना असंगत सा लगता है, परंतु वास्तविकता यह रही होगी कि पहले कमारमित्रा एक गहस्थ स्त्री थी। पत्रोत्पत्ति के पश्चात उसने संन्यास ले लिया. फिर अपने पत्र को जो अब गहस्थ धर्म का पालन कर रहा होगा. उपदेश दिया और उसने माता की प्रेरणा से प्रतिमा का दान किया। वह विधवा थी या सधवावस्था में पति के साथ ही साध्वी बनी, यह कुछ भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि दोनों बातें संभव है। यह भी हो सकता है कि वह पति की आज्ञा से साध्वी बनी हो। ___इन्हीं कुमारमित्रा के उपदेश से जयनाग की कुटुम्बिनी और ग्रामिक जयदेव की पुत्रवधु द्वारा सं. 40 में शिलास्तम्भ दान देने का भी उल्लेख है। 3.3.2.9 आर्या दत्ती (सं. 175) उल्लेख है, कि हुविष्क वर्ष 40 में शीत ऋतु महीने के दसवें दिन सिंहदत्ता ने एक पाषाण स्तम्भ की स्थापना की थी। यह स्थापना वारणगण आर्य हाटीकीय कुल वज्रनागरी शाखा तथा शिरिय संभोग (?) की 'अकका' के आदेश से हुई थी। यह अकका नन्दा और बलवर्मा की शिष्या, महनन्दि की श्राद्धचरी तथा दति (दत्ती) की शिष्या थी। 3.3.2.10 आर्या धन्यश्रिया (सं. 183) ये धन्यपाल की शिष्या थीं, इनकी प्रेरणा से सं. 47 (इं. 126) में शर्वत्रात की पौत्री तथा बन्धुक की पत्नी यशा ने संभवनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की। 3.3.2.11 आर्या ग्रहवला (सं. 209) हुविष्क सं. 74 की चौमुख प्रतिमा के चारों ओर दो-दो पंक्तियों में लेख खुदे हुए हैं उसमें उल्लेख है कि "वारणगण कुल और वज्रनागरी शाखा और आम्रक (संभोग) तीन धनवाचक की शिष्या.......ग्रहवला की आज्ञा से सं 74 की ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास के पांचवें दिन देवकी पत्नी धरवला ने दान..........।” 3.3.2.12 आर्यिका जीवा (सं. 216) यह शिलालेख मथुरा में भग्न स्थिति में है कई अक्षर मिटे हुए हैं। हुविष्क वर्ष 81 में प्राकृत में लिखित इस । 92. (क) ए. पि. इं. 1385 सं. 7, चित्र 9 (ख) ब्र. पं. चन्दाबाई अभि. ग्रं., पृ 494 93. आ. इन्दुमती अभि. ग्रं., खंड 4 पृ. 54 94. आ. आनंदऋषि अभिनंदन ग्रं., स्था. जैन संघ नानापेठ, पूना 1975 ई. 95. जैन शिलालेख संग्रह, भा. 2, संग्रह सं. 44, मथुरा, भाषा-प्राकृत 96. (क) ए. ई. 10, 112 सं. 5 (ख) ब्र. पं. चन्दाबाई अभि. ग्रं., पृ. 454 97. (क) भंवरलाल नाहटा अभि. ग्रं., श्री गणेश ललवाणी, पृ. 191 (ख) जैन सत्यार्थ प्रकाश, 1991 अगस्त-सितंबर, वर्ष 13 अंक 4 के कान्फ्रेंस हेरल्ड में प्रकाशित लेखानुसार 196 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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