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महावीर और महावीरोत्तरकालीन जैन श्रमणियाँ
मूर्ति के नीचे कुशाणकालीन ब्राह्मी लिपि में अभिलेख उत्कीर्णित हैं। उसमें उल्लेख है कि हुविष्क सं. 12 वर्षा के चतुर्थमास दसवें दिन कोटिक गण ब्रह्मदासीय कुल और उच्चानगरी शाखा के आर्य पुशिल की शिष्या दतिल ..... जो हरिनंद की भगिनी थी उसकी आज्ञा से सुतार श्रावक-श्राविकाओं..... ..... गाला गांव की जिनदासी, रूद्रदेव, ग्रहश्री, रूद्रदत्ता, मित्रश्री आदि ने बिम्ब करवाया। 86
कोटिकगण का उल्लेख कल्पसूत्र पट्टावली में मिलता है। ये श्वेताम्बर और यापनीय इन दोनों के पूर्व की स्थिति के सूचक हैं 187
3.3.2.5 आर्या श्यामा (वि. सं. 149 )
आर्या श्यामा आर्य ज्येष्ठहस्ति की शिष्या थी, इनकी प्रेरणा से वर्मा की पुत्री तथा जयदास की पत्नी गुल्हा / गूढ़ा ने संवत् 14 में भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा बनवाई 188
3.3.2.6 आर्यिका गोदासा ( सं. 166 )
सं. 31 में बुद्धदास की पुत्री तथा देवीदास की पत्नी गृहश्री द्वारा आर्यिका गोदासा की प्रेरणा से जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठापना कराने का उल्लेख है। 9
3.3.2.6 दत्ता (सं. 166 )
इनके सदुपदेश से (निर्वतनी) से ग्रहश्री ने सं. 31 में जिन प्रतिमा का दान किया । "
3.3.2.7 आर्या संधि (सं. 170 )
ये कोट्टियगण के आचार्य बलत्रात की शिष्या थीं, इनके उपदेश से जयभट्ट की कुटुम्बिनी ने प्रतिमा की प्रतिष्ठा की। आर्या संधि की ही भक्त जया ने जो नवहस्ती की दुहिता, गुहसेन की स्नुषा देवसेन और शिवदेव की माता थी; उसने एक विशाल वर्धमान प्रतिमा ई. 113 के लगभग प्रतिष्ठित करवाई, ऐसा उल्लेख (E.I. Vol-1 Muttura ins no. 34 ) मिलता है । "
3.3.2.8 आर्यिका कुमारीमित्रा (सं. 170)
यह तपस्विनी आचार्य बलदिन्न (बलदत्त) की शिष्या थी । शिलालेखों में कुमारमित्रा के लिये अनेक प्रशंसनीय शब्दों का प्रयोग किया गया है। उसको संशित ( Whetted), मखित ( Poleshed ), बोधित (Awakened) अर्थात् 86. श्री गणेश ललवाणी, भंवरलाल नाहटा अभि. ग्रं. पृ. 151
87. सचित्र कल्पसूत्र, पृ. 222
88. (क) ए. पि. इं. 1389 सं. 14 (ख) आर्यिका इंदुमती अभिनन्दन ग्रंथ, गणिनी विजयमती माताजी, खंड 4 पृ. 54 89. आ. इंदुमती. अभि. ग्रं. पृ. 54
90. (क) ए. पि. इं. 2, 204, सं. 21, चित्र 10 (ख) ब्र. पं. चंदाबाई अभि. ग्रं., पृ. 494
91. हीरालाल दुगड़, मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म, पृ. 445
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