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महावीर और महावीरोत्तरकालीन जैन श्रमणियाँ
3.3.1.3 श्री गंधर्वदत्ता, गुणमाला, पद्मोत्तमा, केमचरी, कनकमाला, विमला, सुरमंजरी और लक्ष्मणादेवी (वी. नि. के लगभग )
जीवक - चिंतामणि में राजा जीवंधर की पत्नियों के रूप में इनका उल्लेख प्राप्त होता है. जीवंधर अपनी माता विजयादेवी को दीक्षा के मार्ग पर अग्रसर देखकर स्वयं भी विरक्त भाव से कुछ वर्ष राज्य भोगकर श्री सुधर्मास्वामी के पास दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। श्री गंधर्वदत्ता, गुणमाला आदि भी अपने पति के मार्ग का अनुसरण कर श्री सुधर्मास्वामी के पास दीक्षा अंगीकार कर लेती हैं। 14 उत्तरपुराण में इनकी दीक्षा विजयादेवी के साथ ही आर्या चन्दना के समीप हुई, ऐसा उल्लेख है।” संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, तमिल, कन्नड़ आदि भाषाओं में इन पर उत्तम काव्यरची गई हैं। 46
-कृतियाँ
3.3.1.4 पुष्पावती (वी. नि. 11 से पूर्व )
पुष्पावती पुष्पभद्र निवासी राजा पुष्पकेतु की रानी थी। पुष्पचूल और पुष्पचूला स्वर्ग से च्युत होकर एक साथ पुष्पावती के गर्भ में आये, दोनों भाई-बहन युगल के रूप में पैदा हुए। दोनों का परस्पर गाढ़ स्नेह देखकर माता-पिता ने सामाजिक नियम के प्रतिकूल पुष्पचूल व पुष्पचूला दोनों का विवाह कर दिया। संसार में पति-पत्नि कहलवा कर भी ये दोनों भाई-बहन के समान निर्दोष व पवित्र बने रहे। इन दोनों भाई-बहनों की चढ़ती जवानी में यह निर्विकारता तथा भोगों से अलिप्त वृत्ति देखकर राजा-रानी का भोगी मन संसार से विरक्त हो गया, उन्होंने पुष्पचूल को राज्य सौंपकर दीक्षा अंगीकार कर ली। 47
इनकी दीक्षा आचार्य अन्निकापुत्र के काल में होने का उल्लेख प्राप्त होता है। अन्निकापुत्र का निर्वाण वीर. संवत् 11-12 में हुआ, ये आचार्य जयसिंह के शिष्य थे। पुष्पावती की दीक्षा अन्निकापुत्र के निर्वाण से पूर्व हुई थी। 48
3.3.1.5 पुष्पचूला (वी. नि. 12 के पश्चात् )
पुष्पचूला गंगा नदी के तट पर स्थित 'पुष्पभद्रा' नामक नगरी के राजा पुष्पकेतु की कन्या और राजा पुष्पचूल की रानी थी। माता पुष्पावती मरकर देवलोक में देवी बनी थी, उसने अपनी पुत्री पुष्पचूला को प्रतिबोध देने के लिये नरक - स्वर्ग के अनेक दृश्य दिखाये। नरकों के घोर कष्टों से भयभीत पुष्पचूला ने आचार्य अन्निकापुत्र से उसके निवारण का उपाय पूछा, आचार्य ने उसे संयम धारण करने की सलाह दी।
पुष्पचूला ने अपने पति पुष्पचूल से संयम की अनुमति मांगी, तो पुष्पचूल ने उसे इस शर्त पर आज्ञा दी कि आप इसी नगरी में रहेंगी और प्रतिदिन मेरे घर से आहार ग्रहण करेंगी । पुष्पचूला पति की शर्त स्वीकार कर आचार्य अन्निकापुत्र के पास दीक्षित हो गई। जंघाबल क्षीण हो जाने पर अन्निकापुत्र भी पुष्पभद्र नगर में ही स्थिरवासी हो
44. तिरूत्तक्क देवर रचित महाकाव्य, जीवक - चिंतामणि, पृ. 201
45. उत्तरपुराण, पृ. 527
46. (क) जै. सा. का बृ. इ. भाग 7, पृ. 161-66 (ख) डॉ. ज्योतिप्रसाद, ऐतिहासिक जैन पुरूष और महिलाएँ, पृ. 21 47. (क) आव. चू., भाग 1 पृ. 559, (ख) आव. नि. भाग 1, गाथा 1284 (ग) प्राकृत प्रोपर नेम्स, भाग 1 पृ. 470 48. युवाचार्य श्री मधुकरमुनि, जैन कथामाला, भाग 14, पृ. 7, हजारीमल स्मृति प्रकाशन, ब्यावर
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