________________
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
सुधर्मास्वामी की वाणी से प्रभावित होकर जंबूकुमार ने विवाह के दूसरे दिन ही 527 जनों के साथ दीक्षा अंगीकार की। उसमें प्रभवप्रमुख 500 डाकू, जंबू के माता-पिता, जम्बू की आठों पत्नियाँ एवं उनके माता-पिता सम्मिलित थे। उस समय संघ का नेतृत्व 'आर्या सुव्रता' नाम की साध्वी के हाथों में होने का उल्लेख प्राप्त होता है। वीर निर्वाण संवत् 1 में इनकी दीक्षा हुई।
3.3.1.2 समुद्रश्री आदि आठ कन्याएँ, तथा पद्मावती आदि आठ महिलाएँ (वी. नि. 1 )
समुद्रश्री, पद्मश्री, पद्मसेना, कुबेरसेना, नभसेना, कनकश्री, कनकवती एवं जयश्री ये आठों क्रमशः समुद्रदत्त, सागरदत्त, कुबेरदत्त, कुबेरसेन, श्रमणदत्त, वसुषेण, एवं वसुपालित आदि प्रतिष्ठित श्रेष्ठियों की कन्याएँ थी। सभी रूप, गुण तथा कलाओं में पारंगत थी, पिता ने इनका वाग्दान जंबूकुमार के साथ किया किंतु जब आर्य सुधर्मा स्वामी के उपदेश से जम्बू ने दीक्षा ग्रहण करने का संकल्प किया, तो आठों कन्याओं ने महासती राजीमती के सदृश ही अपने माता-पिता को स्पष्ट शब्दों में कह दिया- 'आपने हमें उन्हें वाग्दान में दे दिया है, अतः वे ही हमारे स्वामी हैं, हम जंबूकुमार के साथ ही विवाह करेंगी, उसके पश्चात् या तो हम जंबूकुमार को अपने प्रेम-पाश में बांधकर दीक्षा लेने से रोक लेंगी अथवा हम भी उनके पथ का अनुसरण कर लेंगी। उनकी ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञा देखकर उनके माता-पिता जंबूकूमार के साथ अपनी-अपनी कन्याओं का पाणिग्रहण करवाया।
सुहागरात में सोलहों श्रृंगारों से सुसज्जित इन अनिन्द्य सुन्दरी वधुओं ने कुमार को रिझाने और अपने निश्चय से चलायमान करने का अथक प्रयत्न किया। परस्पर पूरा शास्त्रार्थ चला, किंतु जम्बूकुमार के दृढ़ निश्चय के समक्ष सभी को पराजित ही नहीं होना पड़ा वरन् वे स्वयं भी जम्बूकुमार के साथ दीक्षा लेने के लिये तैयार हो गईं।
जम्बूकुमार एवं पत्नियों का शास्त्रार्थ अत्यन्त ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ रोचक भी है। दीक्षा के समय जम्बूकुमार सोलह वर्ष के थे।", तो उनकी पत्नियां भी इसी प्रकार अल्पवय की होनी संभवित है। साथ ही वे प्रखर प्रतिभा सम्पन्न भी थी, यह उनके द्वारा कथित कथाओं द्वारा ज्ञात होता है ।
उक्त आठ कन्याओं के साथ उनकी माताओं ने भी श्रमणी दीक्षा अंगीकार की थी, उनके नाम इस प्रकार हैं :- 1. पदमावती 2. कमलमाला, 3. विजयश्री, 4. जयश्री, 5. कमलावती, 6. सुषेणा, 7. वीरमती, 8 अजयसेना ।
दिगम्बर ग्रन्थों में जम्बूकुमार की चार पत्नियों का ही उल्लेख है सागरदत्त सेठ की कन्या पद्मश्री, कुबेरदत्त की कन्या कनकश्री, वैश्रवणदत्त की कन्या विनयश्री एवं धनदत्त की कन्या रूपश्री 42
अनुदान : समुद्रश्री आदि जम्बूकुमार की ऐश्वर्य में पली आठों पत्नियों ने भोगयोग्य जवानी में जिस प्रकार काम-भोगों, सुख-सुविधाओं व अपार सम्पदा को ठुकराकर जम्बूकुमार के साथ अपने अविचल प्रेम का अन्त तक निर्वहन किया, वह वस्तुतः महान, अद्वितीय, अनुपम, अत्यद्भुत और मुमुक्षुओं के लिये प्रेरणास्रोत रहा है और रहेगा । विश्व-साहित्य में इस प्रकार का अन्य कोई उदाहरण दृष्टिगोचर नहीं होता। यह घटना जैन कवियों को इतनी रोचक लगी कि उस पर संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा देशी भाषाओं में 100 से अधिक रचनाएँ उपलब्ध होती हैं। संघदासगणि, गुणभद्राचार्य, गुणपालन मुनि हेमचन्द्राचार्य, रत्नप्रभसूरि, जिनसागरसूरि आदि बड़े-बड़े आचार्यों ने इस महाभिनिष्क्रमण की स्तुति की है। 43
41. (क) पंन्यास कल्याणविजय जी, तपागच्छ पट्टावली, पृ. 5-22 (ख) जैनधर्म का मौलिक इति. भा. 2, पृ. 777 42. जैनधर्म का प्राचीन इतिहास, भा. 2, पृ. 34
43. (क) हिं. जै. सा. इ., भाग 6 पृ. 153-155, (ख) उत्तरपुराण का 76वां पर्व
Jain Education International
182
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org