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महावीर और महावीरोत्तरकालीन जैन श्रमणियाँ
परीक्षा ली थी, भय व प्रलोभन के मध्य भी जब वह अडिग रही, तो देव हार मानकर चला गया। पति-पत्नी ने गृहस्थाश्रम में रहकर पहले बारह व्रतों को अंगीकार किया, तत्पश्चात् ज्येष्ठा को वैराग्य हो गया और वह पति की आज्ञा लेकर आर्या चंदना के पास दीक्षित हो गई। 30
अवदान : लौकिक जीवन कितना भी सुखी व सम्पन्न क्यों न हो अन्ततः उसकी परिणति दुःख रूप है, ऐसा चिंतन कर राजमहिषियाँ भी जीवन के चतुर्थ भाग में संसार त्यागी बन जाती थीं। ज्येष्ठा के जीवन का यह उदाहरण आज समग्र मानव जाति के लिये प्रेरणादायक है।
3.2.14 काली आदि दस रानियाँ (वी. नि. 16 वर्ष पूर्व )
प्रभु महावीर जब अपनी केवलीचर्या के चौदहवें वर्ष में मिथिला का वर्षावास पूर्ण कर चंपा नगरी के पूर्णभद्र नामक चैत्य में पधारे, प्रभु के पधारने का समाचार सुनकर चम्पा नगरी के लोग तथा काली आदि दस रानियाँ महावीर के दर्शन तथा प्रवचन श्रवण करने के लिए गईं। उस समय चम्पा नगरी का राजा कोणिक अपने कालकुमार आदि दस भाइयों की सेना को साथ लेकर वैशाली के राजा चेटक के साथ युद्ध करने के लिए गया हुआ था।
देशना के अनन्तर अनुकूल अवसर देखकर कालकुमार आदि दसों कुमारों की माताओं ने अपने पुत्रों के लिए जिज्ञासा व्यक्त की "हे भगवन! हमारे पुत्र कालकुमार आदि युद्ध में गए हुए हैं क्या वे सकुशल वापिस लौटेंगे।" रानियों के प्रश्न के उत्तर में महावीर ने कहा- "हे देवानुप्रिय ! तुम्हारे पुत्र युद्ध में काम आ गए, वे पुन: नहीं लौटेंगे। "31
पुत्र वियोग की बात श्रवण कर काली आदि माताओं का हृदय शोक से संतप्त हो गया। वे संसार के वैभव से विमुख होकर त्याग और वैराग्य मार्ग अपनाने के लिए तैयार हो गईं। प्रभु महावीर ने उन्हें दीक्षित कर आर्या चन्दना को सौंप दिया। काली आदि रानियों ने आर्या चन्दना के साध्वी संघ में सम्मिलित होकर सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। तत्पश्चात् कठोर तपस्या कर कर्मों की निर्जरा करने लगी इनकी तपस्या का लोमहर्षक चित्रण आगम - साहित्य में इस प्रकार मिलता है।
(i) काली : इन्होंने 'रत्नावली तप' की साधना की। यह साधना एक वर्ष तीन मास और बाईस दिन में पूर्ण होती है, इस तप में 384 दिन तपस्या के एवं 88 दिन पारणे के आते हैं। इस प्रकार की तप साधना उन्होंने चार बार की, जो पाँच वर्ष छः मास और अट्ठाईस दिन में पूर्ण हुई। इन्होंने आठ वर्ष संयम पाला ।
(ii) सुकाली : सुकाली रानी ने 'कनकावली' तप प्रारम्भ किया। इसकी एक परिपाटी में एक वर्ष पाँच मास और अठारह दिन लगे। इसमें 28 दिन का पारणा और 1 वर्ष 2 मास 14 दिन उपवास के आते हैं। ऐसी चार परिपाटी को पूरा करने में उन्हें पांच वर्ष नौ महीने अठारह दिन लगे। सुकाली ने नौ वर्ष संयम पाला ।
(ii) महाकाली : इन्होंने " लघुसिंहनिष्क्रीड़ित " तप की आराधना की। इसके एक क्रम में तैंतीस दिन पारणे के और पांच महीने चार दिन तप के होते हैं। इस प्रकार की चार परिपाटी उन्होंने दो वर्ष अट्ठाईस दिन में पूर्ण की। महाकाली साध्वी ने दस वर्ष तक संयम का पालन किया।
30. आव. नि. हरि वृत्ति, भाग 2 पृ. 124
31. निरयावलिका सूत्र, अध्याय 1
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