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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास साक्षात् लक्ष्मी का अवतार स्वरूप विनय आदि गुणों से मंडित 'वासवदत्ता' नाम की कन्या थी।” मगावती एवं राजा चंडप्रद्योत के प्रकरण से वैराग्य प्राप्त कर ही अंगारवती ने भी मुगावती के साथ ही दीक्षा अंगीकार की। आर्या चन्दना के सान्निध्य में उसने उत्कृष्ट ज्ञान और तप की आराधना की। 3.2.11 मदनमंजरी (वी. नि. 22 वर्ष पूर्व) यह महापराक्रमी मालवराज चंडप्रद्योत की आठ रानियों में से एक थी। और दुर्मुख प्रत्येकबुद्ध की कन्या थी। जब मृगावती ने भगवान महावीर के पास दीक्षा अंगीकार की तब इन्होंने भी साथ में संयम ग्रहण किया।28 3.2.12 सुज्येष्ठा वैशाली गणराज्य के अध्यक्ष राजा चेटक की पुत्री सुज्येष्ठा सभी कलाओं में अत्यन्त निपुण एवं सर्वगुणसंपन्ना होने के साथ-साथ धर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धावान भी थी। एकबार एक तापसी उसके पास शुचिधर्म का आडम्बरपूर्ण उपदेश देने लगी. सुज्येष्ठा एवं चेलना दोनों ने युक्तिपूर्ण तर्कों से उसके सिद्धान्तों का इस प्रकार खंडन किया कि तापसी निरूत्तर होकर वहां से तुरन्त चल दी। अपने अपमान का बदला लेने के लिए तापसी ने सज्येष्ठा का सन्दर चित्र बनाकर राजा श्रेणिक को दिखाया। श्रेणिक इस लावण्यमयी रूपसी सुधा का पान करने को लालायित हो उठा। मंत्री अभयकुमार के बुद्धि-कौशल से श्रेणिक सुरंग द्वारा वैशाली पहुंचे। सुज्येष्ठा और चेलना दोनों श्रेणिक के रूप व गुणों से प्रभावित थी, अत: दोनों ही राजगृही जाने के लिए श्रेणिक के साथ रथ में बैठी, तभी सुज्येष्ठा को अपनी रत्नाभूषण की मंजूषा की स्मृति हो आई। वह मंजूषा लेने पुनः राजमहलों में गई। राजा श्रेणिक ने चेलना को सुज्येष्ठा समझकर शीघ्र वहां से प्रस्थान कर दिया। राजगृही की सीमा आने पर श्रेणिक ने सुज्येष्ठा को आवाज दी, तो चेलना ने कहा-"मैं सुज्येष्ठा नहीं, उसकी छोटी बहन चेलना हूं।" श्रेणिक चेलना के रूप सौन्दर्य को देखकर संतुष्ट हुए, और उसके साथ विवाह कर लिया। इधर जब सुज्येष्ठा रत्नाभूषणों की मंजूषा लेकर लौटी तो रथ को वहाँ न देखकर निराश हो गई, उसे अपनी बहन चेलना के इस व्यवहार से क्षोभ हुआ, और सांसारिक जीवन से ही विरक्ति हो गई। उसने अपने पिता राजा चेटक से दीक्षा की अनुमति मांगी। पिता ने राजसी ठाठ व समारोह पूर्वक अपनी पुत्री सुज्येष्ठा को चंदनबाला श्रमणी-संघ में दीक्षित किया। अवदान : जीवन में कितनी ही घटनाएँ चित्त को उद्वेलित करने वाली बन जाती हैं। ऐसे प्रसंगों पर अपने जीवन को समत्व व त्याग से जोड़ने का अपूर्व उदाहरण सुज्येष्ठा ने युग के समक्ष रखा। 3.2.13 ज्येष्ठा यह क्षत्रियकुंड के अधिपति राजा सिद्धार्थ के ज्येष्ठ पुत्र नंदीवर्धन की पत्नी तथा वैशाली गणराज्य के अध्यक्ष चेटक की पुत्री थी। अपने रूप, गुण तथा शील में वह सर्वत्र प्रशंसनीय थी, एकबार देवता ने उसके शीलव्रत की 27. हरिहरनिवास द्विवेदी-मध्यभारत का इतिहास, खंड 1, पृ. 175 28. उत्तरा. नेमिचन्द्र वृति 135-2-1362 29. (क) आवश्यक हरि. वृत्ति, भा. 2 पृ. 124-25 (ख) प्राप्रोने. 2 पृ. 810 176 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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