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________________ महावीर और महावीरोत्तरकालीन जैन श्रमणियाँ अवदान : वैदिक धर्म में जो स्थान गार्गी और मैत्रेयी का है. जैनधर्म में वही स्थान जयन्ती का है, उसकी अध्यात्म निर्जरित मेधा ने कोटि-कोटि जन-समुदाय को स्वस्थ चिंतन प्रदान किया। इस दृष्टि से राजकन्या जयंती का श्रमण-धर्म में दीक्षित होना अत्यन्त महत्त्व रखता है। 3.2.5 प्रभावती (वि. नि. तृतीय दशक पूर्व) सिंधु-सौवीर देश महावीर-बुद्ध के समय एक विशाल शक्तिशाली राज्य माना जाता था। वहां के राजा उदायन अपने समय के बड़े पराक्रमी, लोकप्रिय और क्षमावीर के रूप में प्रसिद्ध सम्राट थे। प्रभावती उदायन की सर्वगुणसम्पन्ना आदर्श पत्नी थी और वैशाली राजा चेटक की पुत्री थी। प्रारम्भ से ही निर्ग्रन्थ-धर्म की उपासिका महारानी प्रभावती की उत्कट धर्मनिष्ठा का प्रभाव उदायन पर पड़ा, उसने प्रभु महावीर के पास श्रावक के बारह व्रतों को अंगीकार किया, इससे पूर्व वह तापस-भक्त था।" एक बार प्रभावती ने अपनी एक दासी को शुद्ध वस्त्र लाने के लिये कहा, किंतु उत्पात दोष से वस्त्र कुसुंभ रंग का हो गया, यह देख रानी अत्यन्त रूष्ट हुई और दासी पर प्रहार किया, इससे दासी की मृत्यु हो गई। निरपराधिनी दासी के मर जाने पर प्रभावती को अत्यंत पश्चाताप हुआ। उसने विचार किया-'अहो, मैं दीर्घकाल से स्थूल प्राणातिपात व्रत का पालन कर रही थी, वह मेरा खंडित हो गया। अब मैं संपूर्ण प्राणातिपात विरमण का पालन करने के लिये श्रमणी दीक्षा अंगीकार करूंगी।।2 प्रभावती ने प्रव्रज्या ग्रहण हेतु राजा उदायन से विनती की, राजा ने कहा -'तुम स्वर्ग में जाने के पश्चात् मुझे प्रतिबोधित करो, तो मैं तुम्हें दीक्षा की आज्ञा दूंगा।' रानी के स्वीकार करने पर उदायन ने राजसी ठाठ के साथ प्रभावती का महाभिनिष्क्रमण किया। श्रमणी प्रभावती ने चंदनबाला के पास दीक्षा अंगीकार की। कठोर तप- संयम का पालन कर वह छह मास में ही संयम की आराधना कर वैमानिक देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुई। अपने प्रण के अनुसार उसने राजा उदायन को प्रतिबोधित किया। उदायन अपने भानजे केशी को राज्य सौंपकर दीक्षित हुए। डॉ. हीरालाल दुगड़ ने प्रभावती की कुल आयु 27 वर्ष उल्लिखित की है। उन्होंने प्रभावती का जन्म ई. पू. 594, विवाह ई. पू. 580, दीक्षा ई. पू. 569 तथा मृत्यु ई. पू. 567 में मानी है। 4 अवदान : सोलह सतियों में प्रभावती का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उनकी धर्मनिष्ठा से ही उस युग के सर्वोच्च सत्तासम्पन्न महापराक्रमी सम्राट् उदायन श्रमणोपासक एवं बाद में श्रमण बने थे। जैन कवियों को उदायन राजर्षि और प्रभावती के चरित बड़े रोचक लगे। इस पर अनेक कलम-कलाधरों ने अपनी लोह-लेखनी चलाई है। 10. आव. नि. हारि. वृ., भा. 2 पृ. 124, 125 11. उत्तरा. नेमिवृत्ति पृ. 169-70 12. दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति गाथा. 93-94 13. प्राप्रोने. 1 पृ. 436 14. मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म, पृ. 184 15. दृष्टव्य-जै. सा. बृ. इ., भा.-2 पृ. 261, 264, 284 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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