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________________ महावीर और महावीरोत्तरकालीन जैन श्रमणियाँ हुई महासती चन्दनबाला ने केवलज्ञान-केवलदर्शन को प्राप्त किया। अंत में, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त बनी। चन्दबालाजी के नेतृत्व में 1400 श्रमणियों ने आत्म कल्याण कर मुक्ति प्राप्त की। __ अवदान : चन्दनबाला का समग्र जीवन उतार-चढ़ाव के चलचित्रों से भरा पूरा था पर उसके जीवन का अंतिम अध्याय एक बृहत् श्रमणी-संघ की संचालिका के गौरवपूर्ण पद पर बीता। गृह एवं परिवार की कारा में बंधी नारी एक इतने बड़े धार्मिक श्रमणी-संघ का नेतत्व करने की भी क्षमता रखती है. यह उस यग के चिन्तन से दर क्षितिज पार की कल्पना को आर्या चन्दना ने साकार कर दिखाया था। वर्तमान युग नारी को राष्ट्राध्यक्ष एवं प्रधानमंत्री आदि उच्च पदों पर आसीन देखकर जिस प्रबुद्ध चेतना का गौरव अनुभव करता है, उसका मूल उत्स श्रमण-संस्कृति के इस पच्चीस सौ वर्ष पुराने इतिहास में छिपा है। धर्म की धुरा का संवहन करने में इन्द्रभूति गौतम आदि 11 गणधरों के समान चंदनबाला की जो महत्त्वपूर्ण भूमिका रही उससे भारतीय-संस्कृति युगों-युगों तक गौरवान्वित रहेगी। जैन वर्णनात्मक और अन्य विपुल साहित्य महासती चन्दनबाला की कथा से भरा हुआ है। उसके जीवन की गाथाएं आवश्यकचूर्णि आवश्यक नियुक्ति, मलयगिरि वृत्ति, श्री कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी आदि प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रंथों में गौरव के साथ गाई गई है। 3.2.2 देवानन्दा (वी. नि. 28 वर्ष पूर्व) श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार देवानन्दा भगवान महावीर की प्रथम माता थी, साढ़े बयासी रात्री तक भगवान इनके उदर में रहे। उसके पश्चात् शक्रेन्द्र की आज्ञा से हरिणैगमेषी देव ने भगवान को देवानंदा के गर्भ से निकालकर क्षत्रियकुण्ड निवासी त्रिशला रानी की कुक्षि में रख दिया था। देवानन्दा ब्राह्मणकुण्डग्राम के प्रमुख, वेदों के प्रकाण्ड पंडित एवं श्रमणोपासक ब्राह्मण ऋषभदत्त की पत्नी थी। भगवान जब राजगृह में तेरहवां वर्षावास समाप्त कर विदेह की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तब मार्गवर्ती ब्राह्मणकुण्डग्राम के बहुशाल चैत्य में पधारे। महावीर के आगमन का संवाद श्रवण कर ऋषभदत्त और देवानंदा भगवान के दर्शन हेतु गये। तीन बार वंदन कर जब दोनों देशना सुनने के लिये बैठे, तो देवानंदा का मन पूर्वस्नेह से भर गया, वह आनन्दमग्न व पुलकित हो गई, उसके स्तनों से दुग्ध की धारा बहने लगी। गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान ने कहा- 'गौतम! यह मेरी माता है, मैं इसका अंगजात पुत्र हूँ। भगवान ने अपने गर्भ-परिवर्तन का संपूर्ण वृत्तान्त कहा, जिसे सुनकर सारी सभा आश्चर्यचकित रह गई। ऋषभदत्त और देवानन्दा के हर्ष का पारावार नहीं रहा। उन्होंने भगवान की धर्म-प्रज्ञप्ति पर दृढ़ श्रद्धा अभिव्यक्त की और भव-भ्रमण का अंत करने वाली प्रव्रज्या प्रदान करने की प्रभु से प्रार्थना की। इस प्रकार ये दोनों पति-पत्नी दीक्षित होकर भगवान महावीर के धर्म संघ में प्रविष्ट हुए। दोनों ने 11 अंगों का अध्ययन किया। एवं सर्व कर्मों का क्षय कर मुक्ति पद को प्राप्त किया। अवदान : देवानंदा जन्मना ब्राह्मण-महिला थी, ब्राह्मण धर्म में स्त्री को संन्यास का अधिकार नहीं है, किंतु देवानंदा ने संन्यास दीक्षा लेकर यह सिद्ध कर दिया कि साधना के मार्ग पर कोई भी व्यक्ति कदम बढ़ा सकता है, इसमें किसी लिंग, जाति, या वर्ण का प्रतिबन्ध नहीं है। श्रमणधर्म में दीक्षित होकर साधना के पूर्ण लक्ष्य तक पहुचने 5. कल्पसूत्र वृत्ति, विनयविजयजी कृत, पृ. 170 6. (क) भगवती सूत्र, 9/33 (ख) आव. नि. भा. 1 गा. 457 पृ. 119 (ग) त्रिषष्टि. 10/8/1-27 (घ) प्राप्रोने. 1 पृ. 388 171 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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