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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास चातुर्याम धर्म व्यवस्था को उन्होंने पंचयाम धर्म में परिवर्तित कर दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रारम्भ से चली आई सचेल परम्परा के साथ अचेल धर्म को भी मान्यता दी। सचेल परम्परा में भी रंगीन वस्त्रों के बदले श्वेत वस्त्र ग्रहण करने का विधान किया तथा उभयकालीन प्रतिक्रमण को श्रमण- श्रमणियों की आवश्यक क्रियाओं में सम्मिलित किया, इससे पूर्व श्रमण - श्रमणियों के लिये उभयकालीन प्रतिक्रमण आवश्यक नहीं था।' इस प्रकार भगवान महावीर ने युग के अनुसार अनेक प्राचीन मान्यताओं में परिवर्तन कर श्रमण श्रमणी श्रावक-श्राविकाओं की एक विशिष्ट आचार-संहिता निर्मित की। गत ढाई हजार वर्षों से अनवरत गतिमान श्रमण परम्परा के प्रवर्तक होने के कारण ही 'महावीर और महावीरोत्तरकालीन श्रमणी परम्परा' को नवीन अध्याय प्रदान किया गया है। " 3.2 महावीर युग की श्रमणियाँ महावीर युग का श्रमणी संघ विशाल सुदृढ़ एवं संगठित था। बड़े-बड़े राजघरानों की कन्याओं, पुत्रवधुओं एवं राजरानियों ने भगवान महावीर के संघ में दीक्षा अंगीकार की थी। लिच्छवी गणतंत्र के प्रधान, भगवान महावीर के अनन्य उपासक राजा चेटक की छह पुत्रियों के महावीर संघ में दीक्षित होने के उल्लेख आगम- साहित्य में वर्णित हैं। अन्य श्रमणियों में अंगारवती, मदनमंजरी, जयंती, मृगावती तथा सम्राट् श्रेणिक की तेईस रानियों ने भी भगवान महावीर के चरणों में दीक्षा अंगीकार की। इस प्रकार भगवान महावीर के जीवनकाल में 36000 श्रमणियाँ संयम मार्ग पर आरूढ़ हुई थीं उनमें कुछ प्रमुख श्रमणियों के उपलब्ध जीवन-वृत्त हम अग्रिम पृष्ठों पर अंकित कर रहे हैं। 3.2.1 चन्दनबाला (वी. नि. 30 वर्ष पूर्व ) भगवान महावीर द्वारा प्रवर्तित धर्म-तीर्थ की प्रथम साध्वी चन्दनबाला चम्पानरेश दधिवाहन एवं माता धारिणी की सुपुत्री थी। राजा दधिवाहन कौशाम्बी नरेश शतानीक के साथ संग्राम करने में धन, जन की अपार हानि का विचार कर जब चम्पा का राज्य छोड़कर चले गये, और माता धारिणी ने शीलव्रत की रक्षा के लिये अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया तब चंदना अकेली रह गई उसे रथी ने क्रीतदासी के रूप में भरे बाजार वैश्या के हाथों बेच कर स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त की । वैश्या ने चंदना को अपना सतीत्व बेचने के लिये विवश किया, किंतु मृत्यु का वरण करने को समुत्सुक चन्दना के द्वारा जब वैश्या का ईरादा पूर्ण नहीं हुआ तो उसने धनावह सेठ के हाथों उसे बेच दिया । सदाचारी सेठ की पितृछाया में भी चन्दना दासी की तरह प्रताड़ना और यंत्रणाओं से घिरी रही। ईर्ष्यालु मूला सेठानी ने उसके सुनहरे लंबे काले बालों को कैंची से काटकर हाथों में हथकड़ियाँ व पैरों में बेड़ियाँ पहना दी और उसे भूमिगृह में डाल दिया। तीन दिन भूख-प्यास से बिलबिलाती चन्दना को सेठ धनावह ने बाहर निकाला और खाने के लिये उड़द के बाप में रखकर दिये । चन्दना घर की देहली में बैठकर किसी महात्मा की प्रतीक्षा कर रही थी, तभी अभिग्रहधारी प्रभु महावीर ने अपने पांच मास 25 दिन का पारणा चन्दना के हाथों से किया। चन्दना कृतार्थ हो गई। प्रभु महावीर को केवलज्ञान प्राप्त होते ही चन्दना ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली और महावीर की प्रथम शिष्या बनकर श्रमणी संघ की प्रवर्तिनी बनी। इनके नेतृत्व में छत्तीस हजार साध्वियों का समुदाय था ।' श्रमणी - संघ का समीचीन संचालन करती 3. उत्तराध्ययन सूत्र, अ. 23 4. (क) समवायांग, सूत्र 649 (ख) आवश्यक निर्युक्ति, भाग 1 गाथा 521, पृ. 148, Jain Education International 170 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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