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________________ अध्याय 3 महावीर और महावीरोत्तरकालीन जैन श्रमणियाँ समग्र जैन इतिहास की प्रधान धुरी तथा सर्वाधिक स्पष्ट पथ-चिह्न भगवान महावीर (599-527 ई. पू.) का रहा है। उनके पूर्व का प्रागैतिहासिक काल या महावीर पूर्व युग है तो उनके निर्वाण के पश्चात् का महावीरोत्तर काल । भगवान महावीर जैनधर्म के अंतिम तीर्थंकर साथ ही शुद्ध ऐतिहासिक पुरूष भी थे, इतना ही नहीं महावीर और महावीरोत्तरकालीन जितनी भी श्रमणियाँ हैं, वे मूलत: महावीर के शासनकाल की है। 3. 1 वर्तमान श्रमणी परम्परा और तीर्थंकर महावीर तीर्थंकर महावीर तीस वर्ष की अवस्था में प्रव्रजित हुए और साढ़े 12 वर्ष की कठोर साधना के पश्चात् उन्हें ऋजुकुला नदी के तट पर केवलज्ञान हुआ, केवलज्ञान प्राप्ति के दूसरे दिन जृम्भिका गांव से 12 योजन दूर महासेनवन उद्यान में वैशाख शुक्ला एकादशी को उन्होंने धर्मतीर्थ की स्थापना की। दिगम्बर- परम्परा के अनुसार भगवान के तीर्थं प्रवर्तन का समय उनके केवलज्ञान के 66 दिन बाद अर्थात् श्रावण कृष्णा प्रतिपदा का है। भगवान के धर्मतीर्थ में उसी समय इन्द्रभूति आदि 11 गणधर एवं चार हजार चारसौ शिष्य श्रमण-धर्म में दीक्षित हुए, तथा राजकुमारी चन्दनबाला आदि अनेक महिलाओं ने भी प्रव्रज्या अंगीकार की। शंख, शतक आदि ने श्रावक धर्म और सुलसा आदि ने श्राविका धर्म स्वीकार किया। इस प्रकार मध्यम पावा के महासेन वन में वैशाख शुक्ला एकादशी वी. नि. पूर्व 30 ( विक्रम पूर्व 490) को भगवान ने श्रुतधर्म और चारित्रधर्म की शिक्षा देकर साधु, साध्वी श्रावक एवं श्राविका रूप चतुर्विध तीर्थ की स्थापना की। यही दिन वर्तमान जैन श्रमणी संघ की स्थापना का शुभ दिन है। यद्यपि हम श्रमणी परम्परा के मूल उत्स का अनुसंधान करने चलेंगे तो सर्वप्रथम भगवती ब्राह्मी - सुंदरी का नाम आता है, किंतु वर्तमान श्रमणी - परम्परा भगवान महावीर और चंदनबाला की आभारी है, इसमें कोई संदेह नहीं, क्योंकि प्रत्येक तीर्थंकर धर्म प्रवर्तक होता है, उनकी अपनी स्वतंत्र परम्परा एवं शासन व्यवस्था होती है। वे परम्परा के वाहक नहीं अपितु जन्मदाता होते हैं। भगवान महावीर भी स्वयंबुद्ध एवं साक्षात् दृष्टा थे, उन्होंने अपने अनुभूत सत्य से धर्मतीर्थ का प्रवर्तन कर स्वतंत्र आचार संहिता कायम की, भगवान अजितनाथ से पार्श्वनाथ तक की अरबों वर्षों से चली आई 1. आवश्यक निर्युक्ति, गाथा 537 2. पं. केलाशचंद्र शास्त्री, जैन साहित्य का इतिहास, पूर्व पीठिका, पृ. 130 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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