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________________ प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ 2.7.67 सुदर्शना कुछ श्रमणियाँ अपने पूर्व जीवन में अत्यन्त व्युत्पन्नमति की थीं। देवेन्द्रमुनि (ई. सन् 1270) ने "सुदंसणाचरियं' चरित काव्य में सुदर्शना को शैशवकाल में ही अनेक विद्याओं की ज्ञाता, पंडिता बताया है, उसे जातिस्मरण ज्ञान हो जाता है। राजसभा में ज्ञाननिधि नामक पुरोहित, ब्राह्मण धर्म का उपदेश करता है, पर सुदर्शना उसके धर्म का खंडन कर श्रमणधर्म का निरूपण कर उसे निरस्त कर देती है। वह आजन्म ब्रह्मचारिणी रह कर आत्मासाधना करती है। मुनि और साधकों के प्रति उसके मन में अपार श्रद्धा थी वह मुनिराज का उपदेश सुनकर विरक्त हो जाती है और अपनी सखी शीलमती के साथ दीक्षा लेकर रत्नावली आदि विविध प्रकार के तपश्चरण करती है।18 2.7.68 सुभद्रा वसन्तपुर निवासी अमात्य जिनदास की पुत्री सुभद्रा जैन धर्मानुयायिनी थी। जिनमत में आस्था न रखने वाले श्रेष्ठी बुद्धदास ने छलपूर्वक उससे विवाह कर लिया। धर्मविद्वेषी श्वसुरपक्ष की ओर से सुभद्रा पर दुःशीलता का जब मिथ्या कलंक लगा, तो सुभद्रा तड़प उठी, उसके तप व आस्था के चमत्कार से चम्पा के राजद्वार बंद हो गए, आकाशवाणी हुई कि "पतिव्रता नारी ही कच्चे सूत में छलनी बांधकर कुएँ से पानी निकालकर छिड़केगी, तभी ये द्वार खुल सकेंगे।" राज्य की सभी स्त्रियों ने असफल प्रयास किये, किंतु किसी से भी द्वार नहीं खुले, अन्ततः सुभद्रा ने चम्पा के बंद द्वारों को उद्घाटित कर अपने सतीत्व का परिचय दिया। सुभद्रा अंत में श्रामणी दीक्षा अंगीकार कर आत्मोत्थान के पथ पर अग्रसर हो गई। सती सुभद्रा पर अनेक कवियों के द्वारा रचित रास, चौपाई, सज्झाय, चतुष्पदिका आदि प्राप्त होती हैं। 2.7.69 सुरसुंदरी अप्रतीम ज्ञान से युक्त सुरसुंदरी राजा मकरकेतु की रानी थी, दोनों के मध्य हुए विनोद पूर्ण प्रश्नोत्तर, पहेली, समस्या द्वारा सुरसुंदरी की प्रखर प्रज्ञा व विवेक का परिचय मिलता है। आरंभ में वासनात्मक जीवन, मध्य में वियोग का दारूण दुःख भोगकर अंत में सुरसुंदरी और मकरकेतु विरक्ति के पथ पर बढ़कर घोर तपश्चरण करते हुए मुक्ति प्राप्त करते हैं।320 2.7.70 सुरसुन्दरी श्रेष्ठी पुत्र अमरकुमार और राजकुमारी सुरसुन्दरी दोनों एक ही पाठशला में अध्ययन करते थे। स्त्री-पुरूष के अधिकारों को लेकर एक दिन दोनों में विवाद खड़ा हो गया। विद्या-अध्ययन के पश्चात् संयोग से सुरसुन्दरी का विवाह अमरकुमार के साथ हो गया। एकबार अमरकुमार सुरसुन्दरी के साथ सिंहलद्वीप की ओर जहाज़ से जा रहा था रास्ते में उसे बचपन में सुरसुन्दरी द्वारा किये अपमान का स्मरण हो आया, प्रतिशोध की भावना से वह सुरसुन्दरी को वहीं अकेली सोती हुई छोड़कर जहाज़ लेकर चला गया। नींद खुलने पर विकल हुई सुरसुन्दरी शीलव्रत की रक्षा के लिए 318. डॉ. नेमीचन्द्र शास्त्री, प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास पृ. 331, तारा पब्लिकेशन्स, वाराणसी 319. श्री भरहेसर सज्झाय, पंच प्रतिक्रमण सूत्र 320. सुरसुंदरीचरियं, धनेश्वरसूरिकृत संवत् 1095, दृ.-जै. सा. का बृ. इ. भाग 6, पृ. 347-49 165 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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