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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास और जीवन को जनसेवा में बिताना । साहसी शूरपाल पत्नी के इन सब स्वप्नों को साकार करता है, पुरूषार्थ और भाग्य के योग से वह महाशाल नगर का राज्य प्राप्त कर लेता है, और पत्नी के सब सपने साकार हो जाते हैं। अंत में राजा शूरपाल एवं शीलवती दोनों श्रुतसागर आचार्य के पास दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। 13
2.7.63 श्रीदत्ता, रत्नचूला, स्वर्णचूला, श्रीदेवी
ये चारों वत्सराज की पत्नियां थीं। वत्सराज सात्त्विक विचार वाला, नीतिनिष्ठ पुरूष था, उस पर अनेक कष्ट आते हैं, किंतु अंत में सुखी व यशस्वी जीवन की प्राप्ति होती है। वह दीक्षा अंगीकार करता है, चारों पलियों ने भी अपने पति के साथ चारित्र ग्रहण किया और अमरपुरी की अधिकारी बनीं। 7314
2.7.64 श्रीमती
आयोध्या के धवल श्रेष्ठी की पत्नी श्रीमती अपने अपूर्व साहस व बुद्धि-चातुर्य से राजा, राज पुरोहित, कोतवाल और प्रधान अमात्य को ऐसा पाठ पढ़ाती है कि वे जीवन भर परनारी प्रेम का त्याग कर देते हैं। श्रीमती अंत में दीक्षा अंगीकार कर उत्कृष्ट तप-संयम की आराधना करती है। 315
2.7.65 सरस्वती
राजा धनमोद की यह पतिव्रता, विदुषी रूप में देवांगना और बुद्धि-वैभव में नाम को सार्थक करने वाली सन्नारी थी। एक बार राजा-रानी में बुद्धि व धन की एकांगी श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया, राजा धन की श्रेष्ठता पर अड़ गया और रानी बुद्धि की। राजा ने उसे सिद्ध करने के लिये चुनौति दी। रानी ने अपने राजसी वस्त्रालंकार त्याग कर एकाकी बुद्धि बल से अनेक चमत्कारी कार्य किये एवं बुद्धि बल की प्रतिष्ठा स्थिर की। राजा धनमोद ने रानी सरस्वती से क्षमायाचना की। रानी सरस्वती ने अपने पति धनमोद राजा एवं सौंत चौबोली के साथ दीक्षा लेकर स्वर्गगमन किया, आगे ये तीनों मोक्ष प्राप्त करेंगे। 316
2.7.66 सुतारा
सत्यव्रती हरिश्चन्द्र की पत्नी थी, पति के व्रत पालन में सहयोगी बनकर सुतारा ने जो उज्जवल आदर्श कायम किया वह आज भी भारतीय संस्कृति का प्राण है। यह कथा जैन परम्परा तथा हिंदू परम्परा दोनों में कुछ घटनाक्रम की रचना के अन्तर से प्राप्त होती है। अंत में जैन - परम्परा के हरिश्चन्द्र व महारानी सुतारा दोनों ने श्रमणी दीक्षा ली। उग्रतप की आराधना कर दोनों ने कैवल्य प्राप्त किया, फिर मोक्ष के अधिकारी बने । 317
313. आधार - शांतिनाथ चरित्र (श्री भावचन्द्र सूरिकृत ) षष्ठ प्रस्ताव में अतिथि संविभाग व्रत पर लिखित उक्त कथानक कथा उपलब्धि सूत्र- जैन कथाएं, भाग 11
314. शांतिनाथ चरित्र से उद्धृत जैन कथाएं, भाग 45
315. राजस्थानी लोककथा साहित्य के आधार पर जैन कथाएं, भाग 52
316. उपलब्धि सूत्र - जैन कथाएं, भाग 32
317. (क) हरिश्चन्द्र राजानो रास, श्री कनकसुन्दर रचित (सं. 1697 ) प्रकाशक - बालाभाई छगनलाल शाह, अमदाबाद (ख) जैन कथाएं, भाग 46
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