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प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ- परम्परा की श्रमणियाँ
2.7.58 विद्युल्लता
श्रेष्ठी सज्जनशेखर के पुत्र विद्युत्सेन के साथ कनकपुर नगर में इसका विवाह हुआ। विद्युत्सेन के पिता को कुलदेवी ने सावधान किया था, कि अपने पुत्र को पढ़ाना नहीं यदि पढ़ जाये तो फिर विवाह मत करना परंतु विद्याध्ययन से अनजान पिता ने जब विद्युत्सेन का विवाह कर दिया तो कुलदेवी ने प्रथम रात्रि में ही उसका अपहरण कर लिया। विद्युल्लता ने इस असीम दुख में भी धैर्य रखा। और अपनी वृत्तियों को निर्मल बनाया। उसकी सात्त्विक वृत्तियों से चोर भी उसके भाई बन गये और वे विद्युत्सेन का दैवी द्वारा अपहरण होने का सुराग और उसके मिलने का स्थान बताते हैं। सती उसकी खोज में लगती है और अपने सतीत्व तेज के बल पर देवी को भी विवश कर देती है, उसका पति सकुशल उसे मिल जाता है। अंत में एक ज्ञानी मुनि की देशना सुनकर विद्युल्लता संयम अंगीकार कर मोक्ष प्राप्त करती है। 309
2.7.59 विनयवती
कौशाम्बी के श्रेष्ठी जिनदास की पुत्रवधु विनयवती धर्मनिष्ठ और पतिसेवा में अनुरक्त थी, उसके शीलधर्म व सत्य पर अनेक विपत्तियां आई किंतु वह सत्य - शील की सभी परीक्षाओं में कुंदन बनकर चमकी। अंत में साध्वी बनकर शिवपुर को प्राप्त किया। 310
2.7.60 विमला
यह ऋषभपुर के राजकुमार पद्मध्वज की पत्नी थी। विमला ने अपने ज्येष्ठ राजध्वज की कामवासना का शिकार बनकर अनेक कष्टों का सामना करके भी शील को सुरक्षित रखा। अंत में पद्मध्वज और सती विमला ने दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष प्राप्त किया । ३॥
2.7.61 शीलवती
श्रावस्ती के श्रेष्ठी गुणचन्द्र की पत्नी थी, 12 वर्षों तक भयंकर कष्ट सहन करने के पश्चात् दोनों ने धर्मघोष मुनि से दीक्षा अंगीकार की । इसकी चार पुत्रवधुओं - रूपवती, लीलावती, लक्ष्मी, और कनकमाला ने भी पति लीलाधर के साथ दीक्षा ग्रहण कर उत्कृष्ट तपः साधना से निर्वाण प्राप्त किया। इन सबमें लक्ष्मी के साहस और बुद्धि की विलक्षणता का विशेष वर्णन है । 3 12
2.7.62 शीलवती
यह कांचनपुर के क्षत्रिय शूरपाल, जो अत्यंत साधारण किसान थे, उसकी पत्नी थी। सामान्य स्थिति में भी यह जीवन विकास के ऊँचे सपने देखती है- सास-ससुर की सेवा, गरीबों अनाथों की सेवा, दान-पुण्य पूजा भक्ति करना 309. कथा उपलब्धि सूत्र : जैन कथाएं 'सती का हठ' भाग 29
310. प्राचीन चौपाइयों के आधार से जैन कथाएं, भाग 47
311. जैन कथाएं, भाग 69, पृ. 119
312. राजस्थानी जैन लोककथा साहित्य के आधार पर जैन कथाएँ, भाग 52
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