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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास पुरूषवेश में चम्पावती के राजा के पास पहुंची। वहाँ पर बीमार राजा को स्वस्थ करके उनसे आधा राज्य प्राप्त किया। तब तक अमरकुमार भी वहाँ पहुंच जाता है दोनों का मधुर मिलन होता है। सुरसुन्दरी अमरकुमार रास की संवत 1689 की नयनसुन्दरकृत प्रति जिनभद्रसूरि कागल नो हस्तलिखित भंडार में उपलब्ध है।321 2.7.71 हेमवती लक्ष्मीपुर के राजा धीर की रानी थी। कामांध विद्याधर से अपने शील की रक्षा हेतु रानी ने फांसी का फंदा लगा लिया, किंतु वह पुष्पहार बन गया। चक्रेश्वरी देवी ने उसके शील की रक्षा की। बाद में हेमवती साध्वी बन गई और सद्गति प्राप्त की। यह कथा सिद्धसेन सूरि ने राजा विक्रमादित्य को सुनाई। विक्रमादित्य एवं विक्रमसेन पर जैनाचार्यों की 15वीं सदी में लिखी रचनाएँ मिलती हैं। उसी में यह कथा भी है।322 321. आधार-अमरकुमार सुरसुन्दरी नो रास, महोपाध्याय धर्मसिंह कृत (संवत् 1736) अन्य रचनाएं दृ.-जै. सा. का बृ. इ. भाग 3, पृ. 63, 260, जैसलमेर ग्रंथ भंडार की सूची, ग्रंथांक 1986 322. आधार : विक्रमादित्य चौपाई, श्री लक्ष्मीवल्लभ (संवत् 1728), कथा-उपलब्धि : जैन कथाएं भाग 22 166 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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