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प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ- परम्परा की श्रमणियाँ
2.7.50 रूपकला
अनूपगढ़ के राजा सुमतिचंद्र व शशिकला की पुत्री रूपकला अपने पिता के क्रोधावेश का शिकार बनकर एक महामूर्ख व दरिद्रनारायण 'शंकर' के साथ ब्याह दी गई। रूपकला ने अपने बुद्धि कोशल से उसे करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक शंकर श्रेष्ठी के रूप में प्रसिद्धि दिलवाई, अंत में रूपकला ने आर्हती दीक्षा लेकर उत्कृष्ट साधना से अपने जीवन को निर्मल बनाया | 301
2.7.51 रूपली
एक गरीब राजपूत की कन्या थी, वह अपनी सुन्दरता, लावण्य एवं चतुराई के कारण राजरानी बन गई किंतु गाये चराने वाली रूपली राजा की चहेती बनकर भी अपनी हैसियत को नहीं भूली राजा के द्वारा उसे परीक्षा हेतु जब उसी दीनदशा में छोड़ दिया जाता है, तब भी वह उतनी ही प्रसन्न है जितनी रानी बनकर थी । हर दशा में अपने असली स्वरूप का ध्यान रखते हुए समभाव की आराधिका रूपली ने चारित्र ग्रहण किया, उसके उपदेश से अनेकों ने श्रावक व्रत ग्रहण किये, राजा विमलसेन, उसकी अन्य रानियाँ, नगरसेठ एवं सेठानी लीलावती ने भी संयम ग्रहण किया। 302
2.7.52 रोहिणी
चन्द्रपुर के राजा चन्द्रसिंह की रानी, उसकी पुत्री ज्योत्स्ना का विवाह विधि के विधानानुसार एक भिखारी के साथ हो गया, कर्म की विचित्रता को देखकर राजा चंद्रसिंह और रानी रोहिणी आचार्य धर्मघोषमुनि के संघ में दीक्षित हो गये। 303
2.7.53 लीलावती
इसका विवाह स्वयंवर में विजयपुर के युवराज चन्द्रसेन के साथ हुआ, इससे चिढ़कर कनकपुर का अभिमानी राजा कनकरथ लीलावती को पाने के लिये अनेक षड्यन्त्र रचता है, अंत में कनकरथ को करनी का फल मिलता है, वह बन्दी बनाया जाता है और चन्द्रसेन पुनः खोया राज्य और पत्नी को प्राप्त कर लेता है, दोनों संयम ग्रहण कर लेते हैं 1304
2.7.54 लीलावती
कौशाम्बी के सागरदत्त श्रेष्ठी के कनिष्ठ पुत्र श्रीराज की पत्नी थी। अपने शीलधर्म की रक्षा करने के लिये उसने जीवन भर अति शौर्य और चातुर्य से काम किया। ठग और चोरों के चंगुल में फंसकर भी वह अपनी चतुराई 301. रास - साहित्य के आधार पर जैन कथाएं भाग 54
302. आधार लोककथा से उद्धृत जैन कथाएं, भाग 32
303. प्राचीन चौपाइयों के आधार पर जैन कथाएं भाग 54
304. आधार-‘लीलावइ कहा' कोउहल कृत, ( 8वीं शती), दृ. - जैन कथाएं भाग 28, अन्य रचनाएं जै. सा. का बृ. इ. भाग 1. q. 574, 340, 419
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