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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास आराधना की। नवपद प्रभाव से श्रीपाल का कुष्ठ रोग नष्ट हो गया, उसके साथी 700 कुष्ठी भी रोगमुक्त हो गये। नवपद के प्रभाव से श्रीपाल का भाग्य चमकता ही गया, 12 वर्षों में 12 रानियों को लेकर पुनः अपने पैतृक राज्य चम्पापुर में आया, चाचा वीरदमन से युद्धकर अपना राज्य वापिस लिया। अंत में दोनों संसार से विरक्त हो गए, मैनासुंदरी घोर तपश्चरण कर नवमें स्वर्ग में देव बनी, वहाँ से मनुष्य बनकर सिद्धि प्राप्त करेगी। मैनासुंदरी पर श्वेतांबर दिगम्बर अनेक कवियों की रचनाएं प्राप्त होती हैं।296 2.7.47 यशोमती
यशोमती का पति भुवनतिलक कुमार पूर्वभव में बहुत अविनयी तथा क्रोधी था, क्रोधावेश में वह सम्पूर्ण श्रमणसंघ के विनाश का घोर पापकर्म भी कर बैठा, किंतु इस जन्म में उसकी आत्मा विनय गुण के कारण ही उन्नत हुई, उसके मुनि बनने पर राजकुमारी यशोमती ने भी राजीमती के समान उन्हीं के पथ का अनुगमन किया, और केवलीमुनि शरद भानु के चरणों में दीक्षित हो गई थी।297
2.7.48 रत्नवती
पुरिमताल के श्रेष्ठी पुत्र रत्नपाल की पत्नी व कालकूट द्वीप के राजा कृष्णायन की पुत्री थी। योगी के रूप में अपने पति को विदेश यात्रा के समय हर संकट से उबारा। योगी राउल के रूप में रत्नवती साहस, चातुर्य और बुद्धिकोशल का परिचय देकर अंत में महातपस्वी अमितगति आचार्य के पास दीक्षा अंगीकार करती है, मरकर वह ब्रह्मदेवलोक में देव बनीं, वहाँ से महाविदेह में मोक्ष प्राप्त करेगी।298 इस कथा का श्री चंदनमुनि (नव तेरापंथी) ने प्राकृत भाषा में 'रयणवाल कहा' के रूप में प्रणयन किया है।
2.7.49 ऋषिदत्ता
ऋषिदत्ता रथमर्दनपुर के राजा कनकरथ की पत्नी थी। कनकरथ का प्रेम पाने के लिये उसकी प्रथम पत्नी रूक्मिणी ऋषिदत्ता को कलंकित करने की जघन्यतम चेष्टाएं करती है पर उदात्तचरित ऋषिदत्ता उन सबको माफ करके अपने शीलधर्म की तेजस्विता और नारी की अनन्त असीम क्षमाशीलता का परिचय देती है। अंत में जाति स्मृति से अपने पूर्वभव को जानकर वह अपने पति के साथ ही दीक्षा अंगीकर कर मोक्ष प्राप्त करती है। उपकेशगच्छ की संवत् 1561 की ऋषिदत्ता चौपई में ऋषिदत्ता का मोक्षगमन भगवान शीतलनाथ की जन्म भूमि में होना लिखा है।99
ऋषिदत्ता चरित्र की एक हस्तप्रति प्राकृत भाषा की सं. 1400 की अतिजीर्ण अवस्था में जिनभद्रसूरि कागल नो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार में उपलब्ध है।
296. श्रीपालरास, श्री ब्रह्मरायमल्ल (सं. 1630), दृ. जै.सा.का.बृ.इ. भाग 2, पृ. 287412 297. आधार-धर्मरत्न प्रकरणटीका श्री देवेन्द्र सूरि जी, गाथा 25, कथा-उपलब्धिः जैन कथाएं, भाग 110 298. आधार - रत्नवती-रत्नपाल चरित्र, कवि मोहनविजय कृत, कथा-उपलब्धि-जैन कथाएं, भाग 2 'कष्टों के यान में साहस
का सम्बल' 299. स्रोत-"इसिदत्ता चरियं (प्राकृत) रचना 9-10वीं शताब्दी के कवि नाइल कुल के गुणपालमुनि कृत, दृ.-मरूगुर्जर जैन साहित्य,
हिंदी जै. सा. बृ. इ., भाग 2 पृ. 398 300. जैसलमेर ग्रंथ भंडार सूची, ग्रंथांक 1319 कथा उपलब्धि सूत्र-जैन कथाएं भाग 20, अन्य रचनाओं के लिये देखें - जै. सा.
का बृ. इ. भाग 2, पृ. 131, 133,464,498, 519, भाग 3, पृ. 162, 295,346-47
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