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प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ 2.7.43 मृगसुंदरी
मृगसुन्दरी दृढ़धर्मिणी थी, गुरूदेव से लिये नियमों का दृढ़ता पूर्वक पालन करती थी, यद्यपि ससुराल में उसे विरोधी वातावरण मिला, फिर भी वह अपने नियमों में दृढ़ रही, बाद में ससुराल वाले भी धर्माभिमुख हो गये। नियम दृढ़ता के कारण अगले जन्म में वह ऐसी शील सम्पन्न हुई कि उसके स्पर्शमात्र से राजकुमार का कुष्ठ रोग दूर हो गया, वह भी जिनधर्मानुयायी बना, उसी राजकुमार के साथ विवाह होने से वह राजरानी बनी और आयु के अंत में संयम पालन कर स्वर्गगति प्राप्ति की।293 2.7.44 मृगांकलेखा
मृगांकलेखा उज्जैनी के सेठ धनसागर की अन्यन्त रूपवती कन्या थी। इसका विवाह सागरदत्त के पुत्र सागरचंद से हुआ। कुछ समय पश्चात् सागरचंद अपनी मुद्रिका मृगलेखा को देकर युद्ध के लिए गया। पीछे मृगलेखा के चरित्र पर आशंका कर उसे गर्भावस्था में ही घर से निकाल दिया गया। मृगलेखा पर आपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा। प्रसूतपुत्र को भी जंगल में से कोई उठा ले गया। उसके शीलभंग करने के प्रयत्न किए गए, किन्तु धैर्यपूर्वक सब कष्टों को सहती हुए उसने अपने सतीत्व की रक्षा की। अंत में पुत्र एवं पति से मिलाप होता है और दोनों दीक्षा अंगीकार कर लेते हैं। साध्वी मृगांकलेखा कठोर तपश्चरण कर कर्मों का उसी भव में क्षय कर मोक्ष प्राप्त करती है।294
2.7.45 मित्रश्री, चन्दनश्री, विष्णुश्री, नागश्री, पद्मलता, कनकलता, विद्युल्लता, कुन्दलता
ये सब शूरसेन देश में उत्तर मथुरा नगरी के श्रेष्ठी धर्मात्मा, श्रमणोपासक, सम्यक्त्वी अर्हद्दास की पत्नियाँ थी। जब राजा उदितोदय ने नगर में कौमुदी महोत्सव की घोषणा की ओर कहा कि अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक नगर की सभी स्त्रियां प्रमदवन में क्रीड़ा के लिये जाएंगी, एवं पुरूष घर पर रहेंगे। उस समय राजा से विशेष आज्ञा लेकर श्रेष्ठी अर्हद्दास और उसकी आठों पत्नियाँ पौषधशाला में आठ दिन का उपवास करते हुए धर्मजागरणा करती हैं। रात्रि में सेठ अर्हद्दास सहित सभी पत्नियां अपनी-अपनी सम्यक्त्व प्राप्ति की हेतुभूत एक-एक कथा (घटना) सुनाती है। अंत में, कुन्दलता की प्रेरणा से सभी पत्नियां, सेठ अर्हद्दास, राजा उदितोदय, रानी उदिता, मंत्री सुबुद्धि और तस्कर स्वर्णखुर आदि 13 व्यक्तियों ने मुनि गणधर के समीप श्रामणी दीक्षा अंगीकार की। घोर तपश्चर्या द्वारा दलित कर्मों का नाश कर स्वर्ग प्राप्त किया। यह दृष्टान्त भगवान महावीर ने राजगृही के सम्राट् श्रेणिक को सुनाया, जिसे सुनकर राजा को भी शुद्ध सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई, अनेक लोगों को भी सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ।295 2.7.46 मैनासुन्दरी
उज्जैन के राजा पहुपाल की रानी निपुणसुंदरी की कन्या थी। पिता द्वारा इच्छित वर माँगने पर मैना ने स्पष्ट मना कर दिया। और कहा-मेरे भाग्य में जैसा होगा ठीक है। इससे चिढ़कर पिता ने कोढ़ी पति श्रीपाल के साथ शादी कर दी। मैनासुंदरी ने किसी मुनि से कुष्ठ निवारण हेतु नवपद की आराधना का महत्त्व श्रवण कर उसकी विधिवत् 293. आधार सूत्र-मृगसुंदरी चौपाई, श्री विनयशेखर कृत, (संवत् 1644) अन्य रचना-जै. सा. का बृ. इ. भाग 6 पृ. 359 294. आधार सूत्र -मृगांकलेखा चरित्र, कवि वच्छकृत, वि. सं. 1520 के लगभग, अन्य रचनाएं : (क) जै.सा.का.बृ.इ. भाग 6
पृ. 351 (ख) ही. र. कापडिआ, जैन संस्कृत साहित्य नो इतिहास, खंड 2, पृ. 155 295. आधार स्रोत-हरिषेण आचार्य कत (वि. सं. 1755) बृहत्कथा कोष में सम्यक्त्व कौमुदी कथा, कथा-उपलब्धि-जैन कथाएं,
भाग 30
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