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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास द्वारा जिनचंद्र को समुद्र में फेंक दिया गया, चारों ने अपने शील को सुरक्षित रखा, अंत में समुद्र से बचकर आये जिनचन्द्र से मिलन हुआ, सबने जिन दीक्षा अंगीकार की । 287 2.7.39 मन्दी शिवानगरी के दानवीर राजा बसन्तर की ये भार्या थीं। राजा बसन्तर एवं रानी मंदी कर्ण की तरह दानशील थे, याचना करने पर वे राज्य का पट्टहस्ती भी दान कर देते हैं, यहां तक कि अपने पुत्रों का भी दान कर देते हैं। अपनी दानशूरता के कारण वे पिता द्वारा राज्य से निष्कासित होते हैं और अपनी दानवीरता से ही पुनः सिंहासनासीन भी हो जाते हैं। अंत में राजा वसन्तर मुनिदेव से एवं रानी मन्दी साध्वी श्रीमती से दीक्षा अंगीकार कर दोनों स्वर्गलोक में जाते हैं। 288 2.7.40 मलयासुंदरी महाबलराजा की प्रिय महारानी मलयासुंदरी अंत तक अपनी एकनिष्ठ पतिव्रत भक्ति का परिचय देकर अंत में जैन साध्वी दीक्षा अंगीकार करती है। 15वीं शताब्दी में अंचलगच्छ के माणिक्यसूरि ने 'महाबल मलयासुंदरी' कथा संस्कृत गद्य में लिखी, उसमें मलयासुंदरी को भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण से 100 वर्ष पश्चात् उत्पन्न होना बताया है। 289 इस पर सर्वप्रथम संस्कृत रचना सं. 1456 पल्लीगच्छ के आचार्य शांतिसूरि की उपलब्ध होती है 1 290 2.7.41 मलयागिरि मलयागिरि कुसुमपुर के राजा चंदन की महारानी थी । दैवयोग से राजा रानी और दो पुत्र सभी का एक-दूसरे से वियोग हो जाता है, मलयागिरि नारी होकर भी साहस, धैर्य और चातुर्य से अपने शील की रक्षा करती है, अंत में सभी का मिलन होता है, और रानी मलयगिरि राजा चंदन के साथ संयम अंगीकार कर आत्मकल्याण करती है। राजा-रानी के चरित्र में सुख - दुःख की चरम स्थिति का चित्रण होने से अनेक कवियों ने इस कथा को अपने काव्य का विषय बनाया है । 291 2.7.42 मालिनी, शीलवती आनन्दपुर के राजा जितशत्रु की रानी मालिनी एवं उसके पुत्र रसाल की पत्नी थी शीलवती । पत्नी और माता की इच्छा के विरूद्ध रसाल घर से निकल गया, 12 वर्षों के पश्चात् आकर शीलवती से क्षमायाचना की। शीलवती ने भी एक शुष्क तरू को फलप्रद कर अपने शीलव्रत का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया। मालिनी और शीलवती दोनों दीक्षा के पश्चात् उत्कृष्ट साधना करके मोक्ष पहुंचे | 292 287. आधार : (क) जैन कथारत्न कोष, भाग 6 पृ. 23, कथा - उपलब्धि सूत्र - जैन कथाएं, भाग 69, पृ. 10 288. उपलब्धि सूत्र - जैन कथाए, भाग 28 (ख) गौतमकुलक बालावबोध ; षट्पुरूष चरित्र 289. जै. सा. का बृ. इ. भाग 6, पृ. 351-52 290. जैन संस्कृत साहित्य नो इतिहास, पृ. 155 291. जै. सा. का बृ. इ. भाग 2, पृ. 88, 320-21, 556; भाग 3 पृ. 39, 105, 124, 163, 380, 527 292. प्राचीन चौपाइयों के आधार पर, दृ. जैन कथाएं, भाग 54 Jain Education International 158 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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