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प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ
प्रियदर्शी के साथ राजा अरिदमन और रानी धारिणी ने भी दीक्षा अंगीकार कर ली, अंत में सद्गति प्राप्त की। कथा का संदेश है - 'बिना विचारे मत बोलो। '274
2.7.26 नर्मदासुन्दरी
विवाह के बाद महेश्वरदत्त नर्मदासुंदरी को साथ लेकर धन कमाने के लिये भवनद्वीप गया। मार्ग में पत्नी के चरित पर आशंका होने से उसे वहीं छोड़ दिया, कुछ समय बाद उसका चाचा वीरदास मिला, वह उसे बब्बर कुल ले गया। यहां वेश्याओं के मोहल्ले में 700 वेश्याओं की प्रमुख हरिणी नामक वेश्या ने वीरदास से रूष्ट होकर नर्मदासुंदरी का युक्ति से अपहरण करवा लिया, नर्मदासुंदरी पंकभूत स्थान पर भी अपने शील पर अटल रही। बब्बर राजा ने उस पर मुग्ध हो उसे पकड़वाने के लिये अपने दंडधारियों को भेजा, तो मार्ग में आते हुए वह जान बूझकर बावड़ी के गड्ढे में गिर गई, शरीर पर कीचड़ लपेट कर पागलों का सा अभिनय करने लगी । बब्बर राजा ने भूतबाधा समझ कर उसका उपचार किया पर लाभ नहीं हुआ। वह खप्पर लेकर पागलों के समान भिक्षाटन करने लगी। अंत में जिनदेव धर्मबन्धु के द्वारा वह पुनः वीरदास से मिली। जीवन के इन उतार-चढ़ाव को देख उसे संसार से बहुत विरक्ति हुई और उसने सुहस्ति सूरि के चरणों में दीक्षा ग्रहण कर ली। वह श्रमणी - संघ की 'प्रवर्तिनी' बनी। इस कथानक पर कई कवियों ने प्राकृत, अपभ्रंश, गुजराती हिंदी में काव्य लिखे ।1275
2.7.27 निर्मला
कंचनपुर के राजा रूपसेन की रानी थी, ईर्ष्याग्नि से दग्ध उसकी सौंतें उसके साथ अमानवीय व्यवहार करती हैं, और षड्यन्त्र रचकर राजा को उसके विरूद्ध कर देती हैं, एक दिन असत्य का पर्दा हटता है, निर्मला अंत में दीक्षा ग्रहण कर सद्गति को प्राप्त करती है | 276
2.7.28 पद्मश्री
पद्मश्री अपने पूर्वजन्म में एक सेठ की पुत्री थी, जो बाल विधवा होकर अपना जीवन अपने दो भाईयों और उनकी पत्नियों के बीच एक ओर ईर्ष्या व सन्ताप दूसरी ओर धर्मसाधना में बिताती रही। दूसरे जन्म में पूर्व पुण्य के फल से राजकुमारी हुई, किंतु जो पापकर्म शेष रहा था उसके फलस्वरूप उसे पति-परित्याग का दुख भोगना पड़ा, तथापि संयम और तपस्या के बल से अंत में केवल्य प्राप्त कर मोक्ष पद पाया। 277
2.7.29 पद्मावती
पद्मावती वसंतपुर नरेश के मंत्री की पुत्री थी । उसका विवाह उसी नगर के धनी-मानी और अनेक कलाओं में कुशल सेठ पद्मसिंह के साथ हुआ। दोनों में अतिशय प्रीति थी। पद्मावती के सौंदर्य पर मोहित होकर एक विद्याधर 274. भारतीय लोककथा के आधार पर दृ. जैन कथाएं भाग 36
275. आधार-नर्मदासुंदरी, महेन्द्रसूरि कृत (संवत् 1187 ); दृ. - प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ. 494; जै.
सा. बृ. इ. इ. भाग 2, पृ. 83, 84, 359, 396, 519; भाग 3 पृ. 335, 372-73, भाग 6, पृ. 349 276. राजस्थानी जैन लोककथा के आधार पर जैन कथाएं भाग 52
277. (क) पउमसिरिचरिउ कविधाहिलकृत प्रका. सिंघी जैन ग्रंथमाला (ख) जै. सा. बृ. इ. भाग 6 पृ. 357
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