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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
ने उसका अपहरण कर लिया। किंतु उसके शील से प्रभावित होकर उसे बहन बना लेता है। पूर्वजन्म के कर्मविपाक के कारण पद्मसी अपनी पत्नी के बुद्धि चातुर्य को चुनौति देकर उसे चार असंभव काम बताकर चला जाता है, उनमें से एक काम शील का पालन करते हुए पुत्र को उत्पन्न करना भी था, इन असंभव कार्यों को पद्मावती किस चतुराई से पूर्ण करती है और अंत में संयम ग्रहण कर लेती है।278
2.7.30 पद्मावती, लीलावती, मदनमंजरी, तिलकसुंदरी, चंद्रावती
पद्मावती राजा रणधीर की पत्नी थी, लीलावती राजा रणधीर एवं रानी पद्मावती के ज्येष्ठ पुत्र जयसेन की पत्नी थी, मदनमंजरी, तिलकसुंदरी और चन्द्रावती राजा रणधीर एवं रानी पद्मावती के लघु पुत्र चन्द्रसेन की पत्नियाँ थीं। इन सबके गुणधारक मुनि के पास संयम अंगीकार करने और सुगति प्राप्त करने का उल्लेख है।279
2.7.31 प्रियदर्शना
यह शूरसेन राजा की पत्नी थी, जीवन के अंतिम क्षण तक एकनिष्ठ शीलधर्म का आराधन करने के पश्चात् दीक्षा अंगीकार कर लेती है।280
2.7.32 बावना चंदन
यह राजकुमारी अपने रूप व गुणों की सुवास के कारण उक्त नाम से विख्यात हुई। राजकुमार वैरीसिंह के साथ उसका मिलन कई अपौरूषेय घटनाओं के घटने के बाद हुआ है। बावना चंदन अपने पातिव्रत्य धर्म की अंत तक रक्षा करती हैं, अंत में दोनों भव्य जीव चारित्र का पालन कर घाति कर्मों का क्षय कर कैवल्यलक्ष्मी को प्राप्त करते हैं।281
2.7.33 भवानी
पूर्वजन्म में अभक्ष्य भक्षण से रोगिणी होती है। गुरूणी जी से अपना पूर्वभव जानकर अभक्ष्य त्याग करती है, परिणाम स्वरूप अगले जन्म में मंत्री-पुत्री बनती है। रसना इन्द्रिय को वश में रखने के कारण वह अमोघवादिनी और परम बुद्धिमती बनती है। वह इतनी पुण्यशालीनि थी कि उसके जन्म लेते ही देश में अकाल की मंडराती भीषण काली छाया सुकाल की सुखद चन्द्ररश्मियों में परिवर्तित हो जाती है। युवावस्था में वह अनेक धूर्तों को वाद में पराजित करके अपने देश का गौरव बढ़ाती है। जीवन की सांध्यवेला में वह संयम ग्रहण करके, केवलज्ञान का उपार्जन करके मुक्त होती है। इतना ही नहीं, उसकी प्रेरणा से उसके पति ने भी संयम का पालन करके मुक्ति प्राप्त की।282
278. आधार सूत्र - श्री कृष्णदास के शिष्य मुनि बालु रचित पद्मावती पदमसी रास, सं. 1692
कथा-उपलब्धिः जैन कथाएं भाग 84, अन्य रचनाएं : जै. सा. बृ. इ. भाग 1, पृ. 176.537 279. जैन कथाएं, भाग 13 280. (क) उत्तराध्ययन की टीका अ. 3 (ख) आराधनासार कथाकोष, दृ.-जैन कथाएं, भाग 68 281. आधार : बावना चंदन चौपाई, श्री मोहनविमल जी कृत 18वीं शताब्दी, कथा-उपलब्धिः जैन कथाएं, भाग 40 282. जैन कथाएं, भाग 81
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