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________________ प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ ज्ञाता एवं भूत-भविष्य की घटनाओं को जानने वाली होने के साथ वह अद्भुत क्षमाशील थी। सौंत दुल्लह देवी के सभी षड्यन्त्रों को जानते हुए भी समताभाव से अपना लोकापवाद सहती है और उसे धर्म की ओर उन्मुख करती है। राजा अरिकेसरी को सम्यक्त्वी ही नहीं बनाती वरन् संयम ग्रहण करने की प्रेरणा देती है। चम्पकमाला भी संयम लेकर 11 अंगों का अध्ययन कर प्रवर्तिनी पद को प्राप्त करती है, अंत में मोक्ष प्राप्त करती है।265 2.7.18 चम्पकमाला, फूलदे, सुघड़दे, देवलदे, रत्नदे निशीथवृत्ति में गजसिंह कुमार का चरित्र वर्णित है, उसकी 5 रानियाँ थीं। इन पाँचों ने अपने पति के साथ जीवन के अंतिम भाग में संयम ग्रहण कर आत्म-कल्याण किया था। कई कवियों ने इस कथा को अपने काव्य का विषय बनाया है।266 2.7.19 विमलमती यह वेणातट नगर आंध्रप्रदेश के कामराष्ट्र जनपद के राजा धनद की पटरानी थी। धनद श्रावक के 12 व्रतों का पालन करता था। विमलमती बौद्ध धर्मानुयायी संघश्री जो राजा धनद का मंत्री था, उसकी बहन थी, धर्म का तत्व समझकर वह भी जैनधर्मी बन गई थी। एकबार बौद्ध गुरू बुद्धश्री के प्रभाव में आकर संघश्री ने असत्य वचन का प्रयोग किया, इस गहन मिथ्यात्व के कारण वह उसी समय मरण-शरण होकर नरक में गया। इस घटना को देख राजा धनद व विमलमती को विरक्ति हो गई वे समाधिगुप्त मुनि एवं तत्कालीन आर्या जिनदत्ता के पास प्रवर्जित हो गए। चिरकाल तक संयम की आराधना कर धनद मुनि दिव्यपुरी के निकट गोवर्धनपर्वत से मोक्ष गए, एवं साध्वी विमलमती स्वर्ग गई।267 2.7.19 जयसुन्दरी __जयसुन्दरी के पति पाटणपुर के श्रेष्ठी सुंदरशाह को धर्म कर्म में विश्वास नहीं होने से दोनों के बीच तकरार हो जाती है, सुंदरशाह पत्नी की धर्म निष्ठा को चुनौति देता है, वह उसे छोड़कर परदेश चला जाता है। जय सुंदरी ने बड़ी सूझ-बूझ और चातुर्य के साथ अपनी कमाई से सुंदर महल बनवाए, राजा को धर्मबन्धु बनाया और बड़े नाटकीय ढंग से शील रक्षा करते हुए भी पुत्रोत्पत्ति की। आखिर सुंदरशाह के समक्ष सब भेद खुलता है और वह पत्नी की धर्मनिष्ठा का सच्चा प्रशंसक बन जाता है। जयसुंदरी ने धर्मरक्षा करते हुए जीवन व्यवहार चलाया और अंत में जयसुंदरी ने पति के साथ संयम ग्रहण कर शिवसुख को प्राप्त किया।268 2.7.20 झणकारा यह रामावती नगरी के रामेश्वर हलवाई की पुत्री थी। अयोध्या के श्रेष्ठी पुत्र लीलापत उसके रूप को स्वप्न में देखकर उसी की खोज में निकल जाता है, देव सहयोग से वह झणकारा के साथ विवाह करता है। अनेक रूप 265. श्री सुपार्श्वनाथ चरित्र; जैन कथारत्नकोष भाग 6, बालावबोध गौतमकुलक, द. जैन कथाएं, भाग 76 266. जैन साहित्य का बृहद इति. भा. 5 पृ. 325, जैन गुर्जर कविओ, भा. 3 पृ. 60, 63, 156, 524, 526; 267. उपलब्धि सूत्र : जैन कथाएं, भाग 100 268. जैन कथाएं, भाग 28 153 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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