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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास दोनों संयम ग्रहण कर लेते हैं। प्राचीन जैन चरित्रों में 'वीरसेन कुसुमश्री' के चरित्र पर कई विद्वानों व कवियों की रचनाएँ उपलब्ध होती हैं।259
2.7.13 गुणमंजरी मंजुघोषा
कौशाम्बी के राजा बसंतमाधव की रानियाँ, अनेक कष्टों का अपने जीवन में अनुभव करने के पश्चात् दोनों दीक्षा लेकर मुक्त हुईं।200
2.7.14 गुणमाला
तिलकपुर के राजा सिंहरथ और रानी मृगासुंदरी की परम शीलवती कन्या थी, प्रारम्भ से ही निर्ग्रन्थ धर्म की मर्मज्ञा और कर्म सिद्धान्त पर विश्वास करने वाली गुणमाला का विवाह एक जीर्ण रोगी भिखारी के साथ कर दिया। चक्रेश्वरी देवी के संकेत से गुणमाला ने महामंत्र के अभिमंत्रित जल से पति का रोग दूर कर दिया, वह राजपुर के राजा वीरधवल का पुत्र गुणभद्र था। राजा सिंहरथ को ज्ञात होने पर गुणमाला से क्षमायाचना की, गुणमाला व गुणभद्र ने दीक्षा लेकर सद्गति प्राप्त की।261
2.7.15 गुणसुंदरी
__ भद्दिलपुर नगर के राजा अरिमर्दन की कन्या थी। उसके कर्म सिद्धान्त से क्रुद्ध पिता एक सामान्य लकड़हारे के साथ उसका विवाह कर देते हैं। किंतु बुद्धिमती गुणसुन्दरी अपने परिश्रम और भाग्य पर आस्था रखती है और अंत में भाग्य ही फलता है, भूपाल नहीं, यह सिद्ध कर देती है। गुणसुंदरी अपने पति राजा पुण्यपाल के साथ श्री वर्धमान मुनि से दीक्षा लेकर अपूर्व तपश्चर्या द्वारा मोक्ष पद प्राप्त करती है।262 गुणसुंदरी पर अनेक कवियों की रचनाएं उपलब्ध होती हैं।263
2.7.16 गुणावली व प्रेमलालच्छी
ये चंदराजा की रानियाँ थीं, अंतिम समय में चंदराजा के साथ 700 रानियों द्वारा श्रमणीधर्म में प्रवेश करने का उल्लेख प्राप्त होता है।264
2.7.17 चम्पकमाला
कुणाल के राजा अरिकेशरी की पटरानी चम्पकमाला दृढ़ सम्यकत्वी और तत्त्वज्ञा थी, चूडामणि ग्रंथ की विशिष्ट 258. आधार-कुसुमश्री रास, जिनहर्षकृत (संवत् 1715), दृ. जैन कथाएं, भाग 39 259. जै.सा.बृ.इ. भाग 3, पृ. 123, 165 260. प्राचीन चौपाइयों के आधार पर, दृ. जैन कथाएं, भाग 53 261. जैन कथाएं, भाग 68 262 आधार -उपाध्याय गुणविनयकृत गुणसुंदरी चौपई (संवत् 1665), दृः- जैन कथाएं भाग्यचक्र कथा' भाग 29 263. दृ.- जै. सा. बृ. इ. भाग 2, पृ. 131, 472; भाग 3 पृ. 93; भाग 6 पृ. 357 264. चन्दराजा नो रास, श्री मोहनविजयजी कृत. (वि. सं. 1782 राजनगर), दृ. जैन कथाएं, भाग 74
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