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________________ प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ कर राजा पुरन्दर के साथ रानी कलावती ने भी संयम ग्रहण किया, उत्कृष्ट चारित्र का पालन कर पुरन्दर और कलावती 12वें देवलोक में देव बने। 254 2.7.9 कुबेरदत्ता मथुरा की गणिका कुबेरसेना की युगल-संतान कुबेरदत्त और कुबेरदत्ता का अज्ञात अवस्था में परस्पर विवाह हो गया, ज्ञात होने पर कुबेरदत्ता ने श्रामणी - दीक्षा ग्रहण करली, निर्मलचारित्र का पालन करते हुए उसे अवधिज्ञान पैदा हो गया, उसने ज्ञान से जाना, कि मेरा भाई कुबेरदत्त अपनी ही माता के साथ भोग भोगता हुआ एक पुत्र का पिता बन गया है, सद्बोध देने की भावना से वह मथुरा में अपनी माता कुबेरसेना के यहाँ ठहरी, और उसके पुत्र को क्रीड़ा कराने के बहाने से उसने उस नवजात शिशु के साथ स्वयं के, कुबेरदत्त और कुबेरसेना तीनों के छह-छह मिलाकर 18 नातों की बातें समझाई और उन्हें धर्ममार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उक्त कथा जम्बूकुमार ने उस युग के दुर्दान्त दस्यु प्रभव तस्कर को सुनाई। यह कथा श्रवण कर प्रभव ने पाप-पंक में निमग्न अपनी आत्मा का उद्धार किया। 255 2.7.10 कुवलयमाला दुःखपूर्ण संसार में भ्रमण का कारण क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह है । इनके प्रभावों का दिग्दर्शन पाँच रूपकों द्वारा कथात्मक ढंग से किया गया है। कथा के मुख्य पात्र कुवलयचन्द्र और कुवलयमाला दोनों अपने पुत्र पृथ्वीसार कुमार को राज्यभार सौंप दीक्षा ले लेते हैं। 255 2.7.11 कुसुमवती सेठ विनोदीलाल की इच्छा के विरूद्ध उसकी पुत्री कुसुमवती ने धनहीन श्रेष्ठी पुत्र हीरालाल से विवाह किया, उसके धैर्य, विवेक व शील के प्रभाव से हीरालाल राजा बना। अंत में जैनमुनि से अपना पूर्वभव ज्ञात कर दोनों ने दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया। 257 2.7.12 कुसुम श्री रत्नद्वीप की रत्नपुरी के राजा रणधीर की अपूर्व सुन्दरी कन्या कुसुमश्री का विवाह कनकशालपुर के राजा हरिकेशरी की रानी गुणावली के पुत्र वीरसेन के साथ हुआ। विवाह के पश्चात् देव-माया से पति-पत्नी का बिछोह और फिर कुसुम श्री का वेश्या के चंगुल में फंस जाना, बड़ी चतुराई से व साहस के साथ वह अपने शील की रक्षा करती हुई, बड़े आश्चर्यजनक ढंग से पति वीरसेन से मिलती है, यह प्रसंग अत्यंत रोचक व प्रेरणादायी है। अंत में 254. आधार - भावदेवसूरि शिष्य मालदेवकृत पद्य-चौपाई, दृ. जैन कथाएं, भाग-84 255. आधार - जंबूचरियं, गुणपालन मुनि (प्राकृत, संवत् 1076) दृ. जैन कथाएं, भाग 102, अन्य रचनाएं-दृ. जै. सा. का बृ. इ. भाग 6 पृ. 153-55 256. आधार - कुवलयमाला, उद्योतनसूरिकृत (वि. सं. 835 ), दृ. जैन कथाएं, भाग 72 257. जैन कथाएं, भाग 46, पृ. 1 Jain Education International 151 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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