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जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
2.7.4 कनकसुन्दरी
अयोध्या के श्रेष्ठी धनदत्त के पुत्र मदनकुमार के साथ कनकसुंदरी का विवाह निश्चित् होता है, किंतु मदन की पूर्व प्रेमिका कामलता गणिका अपने चंगुल में फंसाये रखने के लिये सर्वांगसुंदरी कनकवती को कानी बताती है, उसके चित्र को भी विकृत करके मदन के मन में भ्रांति और नफरत पैदा कर देती है। शादी के बाद भी कनकसुंदरी अंजना की तरह पतिसुख से वंचित ही नहीं अपितु पति के लिये नफरत बनी रहती है। इतना अपमान एवं प्रताड़ना सहकर भी वह हताश नहीं होती। अपनी हिम्मत और बुद्धिमानी के बल पर धीरे-धीरे पति की भ्रांति को दूर करती है, उसे वैश्या के चंगुल से मुक्त कराकर आदर्श गृहस्थ सुख का चमन गुलजार करती है। अंत में धर्मघोष मुनि की देशना से उदबुद्ध होकर कनकसुंदरी व मदनकुमार चारित्र ग्रहण कर अमरपद को प्राप्त करते हैं।250 इस प्रकार-पथभ्रष्ट पति को नारी सन्मार्ग पर ला सकती है। "भ्रांति से अशान्ति और विश्वास में शांति" का संदेश देती है।
2.7.5 कमला
भृगुकच्छ के राजा मेघरथ व रानी पद्मावती की कन्या कमला सोपारपुर के राजा रतिवल्लभ की रानी बनीं। सागरद्वीप के राजा कीर्तिध्वज ने उसका अपहरण करवाकर लोह श्रृंखलाओं से जकड़ दिया और अंधेरे कोष्ठागार में डलवा दिया। कमला के शील के प्रभाव से श्रृंखलाएँ टूट गईं, राजा कीर्तिध्वज ने उससे क्षमायाचना कर अपनी बहन बनाया। कालान्तर में रानी कमला के साथ राजा रतिवल्लभ ने भी दीक्षा ग्रहण की और अपना आत्मोद्धार किया।
2.7.6 कमलावती
कमलावती राजा मेघरथ की रानी थी। कमलावती का जीवन अनेकानेक कष्टों से घिरा हुआ रहने पर भी वह अपने धैर्य व साहस को नहीं खोती, अंत में राजा-रानी दोनों संसार से विरक्त हो जाते हैं, पर रानी कमलावती अपने दूध-मुंहे बच्चे के कारण बीस वर्ष घर में ही शील का पालन कर पुत्र को राजगद्दी पर बिठाकर दीक्षा लेती है।252
2.7.7 कलावती
कलावती अवन्ती के राजकुमार शंख की पत्नी थी। विवाह में आये अनेक व्यवधानों को पार कर इन दोनों का संबन्ध हुआ। शीलधर्म एवं प्रेम की एकनिष्ठता की रक्षा करते हुए कलावती अंत में शंख कुमार के साथ संयम अंगीकार करती है। कलावती के पवित्र चरित्र पर अनेक कवियों की रचनाएं उपलब्ध होती हैं।253
2.7.8 कलावती
भोगपुर व विलासपुर के राजा पुरन्दर की रानी, पतिव्रता सती थी। जगभूषण केवली से अपना पूर्वभव श्रवण 250. उपलब्धि सूत्र - जैन कथाएं, "भ्रांति में अशांति" भाग 29 251. आधार-शीलोपदेशमाला, सोमतिलकसूरि टीका (संवत् 1394) कथा उपलब्धि सूत्र-जैन-कथाएं, भाग 65 252. आधार-कमलावती रास, आगमगच्छीय श्री विजयभद्रसूरि (संवत् 1410), दृ.-जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
भाग 1 पृ. 278, 476%; भाग 6 पृ. 358 253. आधार-कलावती सती रास, आगमगच्छीय श्री विजयभद्रसूरि, (रचना संवत् 1410). दृ. जै. सा. का बृ. इ. भाग-1, पृ. 278,
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