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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास पर स्त्री सेवन के पाप का प्रायश्चित् कर मधु ने विमलवाहन मुनि से दीक्षा ले ली, इसने भी आर्यिकाव्रत स्वीकार कर लिये। 77
2.6.10 चारित्रमती
इसने "गरूड़पंचमीव्रत" किया, अंत में दीक्षा लेकर देव बनी। 78
2.6.11 जिनदत्ता
मथुरा के सेठ भानुदत्त की पत्नी यमुनादत्ता को इसने दीक्षा दी थी। वीतशोका नगरी के राजा अशोक की पुत्री श्रीकान्ता ने भी इसके पास दीक्षा ली।179
2.6.12 जिनमति'०
2.6.13 जिनमतिक्षन्ति :
इनसे कौशाम्बी के श्रेष्ठी सुभद्र की पुत्री धर्मवती ने जिनगुणतप लेकर उपवास किये थे। 2.6.14 दत्तवती
पोदनपुर के राजा पूर्णचन्द्र की रानी हिरण्यवती ने इनसे दीक्षा ली थी।182 2.6.15 दान्तमती
इस आर्यिका द्वारा सिंहपुर की रानी रामदत्ता को उद्बोध प्रदान करने का उल्लेख है।183 2.6.16 दुर्गन्धा
धनमित्र की कन्या दुर्गन्धा ने "रोहिणीव्रत" का आराधन कर आयु के अंत में दीक्षा ली और मरकर प्रथम स्वर्ग में देवी बनी।184
177. प. पु. 109/136-162, दृ. जैपु को. पृ. 124 178. जैन व्रत कथा संग्रह, पृ. 107 179. ह पु. 33/96-100; 60/69-70 दृ. जैपुको पृ. 145 180. देखिए. धर्ममति 181. हपु. 60/101-2; मपु. 71/437-38, दृ. जैपुको. पृ. 146 182. हपु. 27/56, जैपुको. पृ. 159 183. मपु. 59/199, 212, दृ. जैपुको. पृ. 163 184. जैन व्रत कथा संग्रह, पृ. 54
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