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2.5.20
वर्तमान युग की अंतिम साध्वी के रूप में विष्णु श्री का भी उल्लेख है। 168
2.6 पुराण - साहित्य में वर्णित जैन श्रमणियाँ
जैन पुराण - साहित्य अत्यंत विस्तृत एवं विशाल है, उसमें अनेक जैन श्रमणियों के उल्लेख हैं। प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर तक के काल में जिन-जिन श्रमणियों ने संयम ग्रहण किया उनका उल्लेख हमने प्रायः उस-उस तीर्थंकर के साथ कर दिया है, शेष श्रमणियों का काल निर्णीत नहीं होने से उनका वर्णन हम यहाँ अकारादि क्रम से कर रहे हैं।
2.6.1 अनुशा
यह दारूग्राम निवासी विमुचि ब्राह्मण की भार्या तथा अतिभूति की जननी थी। कमलकान्ता आर्यिका से दीक्षित होकर तप व शुभ ध्यान से मरण कर ब्रह्मलोक में देवी बनी, यहाँ से च्युत होकर चन्द्रगति विधाधर की पुष्पवती नाम की भार्या हुई | 169
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
2.6.2 अभयमती
यौधेय देश के राजपुर नगर के राजा मारिदत्त को किसी भैरवाचार्य ने आकाशगमन की शक्ति प्राप्त करने का उपाय बलिकर्म बताया, उसमें अनेक पशु-पक्षी युगल एकत्रित किए गए, एक मनुष्य युगल की कमी थी। उसी समय दिगम्बर मुनि सुव्रताचार्य अपने चतुर्विध संघ के साथ यहां पधारे, अवधिज्ञान से इस महाहिंसा को रोकने में निमित्तभूत बनने वाले क्षुल्लक अभयरूचि व क्षुल्लिका अभयमती को राजपुर में आहार हेतु भेजा। राजा मारिदत्त के पूछने पर अपना व राजा का मामा-भानजे का रिश्ता तथा पूर्वभव में अपने द्वारा आटे के मूर्गे की बलि के फलस्वरूप कई भवों तक पीड़ादायी महान कष्ट उठाने की गाथा को सुनाकर उन्हें उस महाहिंसा से उपरत किया। राजा ने एवं क्षुल्लक ने सुदत्ताचार्य के पास मुनि दीक्षा अंगीकार की । क्षुल्लिका अभयमती ने भी गणिनी के पास दीक्षा ली 1170
2.6.3 गणिनी अमितमती, अनंतमती
ये दोनों महाविदेह क्षेत्र के जगत्पाल चक्रवर्ती की पुत्रियाँ थीं इनके सदुपदेश से यशस्वती, गुणवती, कुबेरसेना आदि कईयों ने पूर्वकृत कर्मों का फल श्रवणकर दीक्षा अंगीकार की। 7 "
2.6.3 कनकमाला
विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में शिवमंदिर के राजा मेघवाहन की रानी विमला की ये पुत्री थी, यौवनावस्था
168. महनिशीथ पृ. 115-117 दृ प्राप्रोने. भाग 2 पृ. 706
169. प. पु. 30/116, 124 125 134, दृष्टव्य, जैन पुराण कोश, पृ. 20
170. आर्यिका रत्नमती अभि. ग्रंथ. पृ. 378-89
171. आदिपुराण, पर्व 46; म.पु. 46/45-47 दृ. जै. पु. को., पृ. 29
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