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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास ग्रहण कर छहों मोक्ष के अधिकारी बनें।।51 रानी कमलावती ने त्याग, तितिक्षा व साधना का ऐसा सुंदर रूप राजा के समक्ष चित्रित किया कि आकंठ भोगों में निमग्न राजा विशालकीर्ति संयम पथ पर अग्रसर होकर सर्वाथसिद्धि प्रदायक मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। समीक्षा इसी प्रकार का कथानक 'हत्थिपाल जातक' में बुद्ध द्वारा वर्णित है। वहाँ महात्मा बुद्ध पूर्वभव में पुरोहित पुत्र हस्तिपाल के रूप में उल्लिखित हैं, वे अपनी वैराग्यवाहिनी रसधारा में अपने पिता, परिवार, राजा, राजपरिवार यहां तक कि समस्त वाराणसी के नागरिकों को संयम-मार्ग की ओर बहाकर ले जाते हैं, सारी वाराणसी खाली हो जाती है, राजा का नाम वहाँ भी 'एसुकारी' है। संभव है ये दोनों घटनाएँ दो न होकर एक ही हों। 2.5.5 अनुकोशा जम्बूद्वीप के दारू नामक ग्राम में वसुभूति ब्राह्मण की पत्नी। अतिभूति उसका पुत्र और सरसा पुत्रवधू थी। कयान ब्राह्मण ने सरसा का अपहरण कर लिया, यह अपने पति व पुत्र के साथ उसे ढूंढने निकली, किंतु कहीं भी सरसा का पता नहीं लगा। एक मुनि के उपदेश से वैराग्य पैदा हुआ यह अपने पति के साथ दीक्षित हो गई। कमल श्री आर्यिका के पास रहकर उसने तप-संयम की शिक्षा प्राप्त की। मरकर सौधर्म देवलोक में देव बनीं। वहाँ से च्यव कर चन्द्रगति विधाधर की पुष्पवती रानी बनी।।52 2.5.6 कमलश्री अनुकोशा ने इस साध्वी के पास दीक्षा ग्रहण की थी।143 2.5.7 सरसा दारू ग्राम के अतिभूति की पत्नी। कयान नाम के ब्राह्मण ने इस पर आसक्त होकर अपहरण कर लिया था। अंत में एक साध्वी के सम्पर्क में आकर इसने दीक्षा ग्रहण कर ली थी। मृत्यु प्राप्त कर ईशान देवलोक में देवी बनीं। वहाँ से च्युत होकर पुरोहित की कन्या वेगवती हुई। वहाँ भी दीक्षा लेकर ब्रह्मदेवलोक में गई, वहीं से जनक-पुत्री सीता के रूप में उत्पन्न हुई।।54 2.5.8 जयश्री इसने अंजना के जीव कनकोदरी को जिन-प्रतिमा का अनादर न करने का उपदेश दिया था और उसे सम्यक्त्वी बनाया था।155 151. (क) उत्तरा. अ. 14 (ख) प्राप्रोने. पृ. 160%; (ग) उत्तरा. नेमि वृ. पृ. 136 152. त्रि. श. पु. च., पर्व 7 सर्ग 4 श्लोक संख्या 208-14 153. त्रि.श.पु.च. 7/4/212 154. त्रिश.पु.च. 7/4/209-217, 236-37 155. त्रि.श.पु.च. 7/3/174-79 132 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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