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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास पुत्र को मिथिला नरेश पद्मरथ ने अपना पुत्र बनाकर पालन-पोषण किया और उसे मिथिला का राज्य प्रदान कर दिया । मदनरेखा का ज्येष्ठ पुत्र चन्द्रयश सुदर्शनपुर का अधीश बन गया था। एक बार चन्द्रयश और मिथिला नरेश नमि के बीच युद्ध छिड़ गया। दोनों भ्राता एक-दूसरे से अनजान थे। साध्वी मदनरेखा को इस घटना का पता लगा तो वह धन-जन की अपार हानि का विचार कर युद्ध-स्थल पर पंहुची, दोनों भ्राताओं का परस्पर परिचय देकर युद्ध बंद करवाया। 144
समीक्षा
मदनरेखा के पुत्र नमिराजऋषि प्रत्येकबुद्ध हुए। उन्हीं के समय में तीन अन्य प्रत्येकबुद्ध भी हुए थे - कलिंग में करकंडु, पाँचाल में द्विमुख और गांधार में नग्गति । इन चारों प्रत्येकबुद्ध के क्षितिप्रतिष्ठित नगर के यक्षायतन में मिलने तथा पारस्परिक संलाप होने का उल्लेख आगमों में वर्णित है। किन्तु महावीर या पार्श्व के तीर्थ में ये चारों हुए हों ऐसा विवरण कहीं नहीं मिलता। अत: यह संभव है कि ये चारों महावीर और पार्श्व के मध्यवर्ती काल में हुए और इसी बीच सिद्ध, बुद्ध मुक्त हुए ।
मदनरेखा चरित्र प्रत्येकबुद्ध कथाओं में 'नेमिचरित्र' के साथ भी वर्णित है पर पीछे इसकी रोचकता के कारण अनेक स्वतन्त्र रचनाएँ लिखी गई हैं। 45 मदनरेखा कथा की संस्कृत गद्य की एक हस्तलिखित प्रति पाटण के तपागच्छ ज्ञान भंडार में 17वीं सदी की है। 146 तथा एक हस्तलिखित प्रति बी. एल. इन्स्टीट्यूट वल्लभस्मारक दिल्ली में भी मौजूद है, क्रमांक अंकित नहीं है।
2.5 आगम व आगमिक व्याख्याओं में वर्णित कतिपय अन्य जैन श्रमणियाँ
श्वेताम्बर परम्परा मान्य आगम, चूर्णि, भाष्य, निर्युक्ति आदि में उन श्रमणियों के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं, जिनका वर्तमानकालीन तीर्थंकरों के साथ संबंध नहीं है, अपने जीवन से तप त्याग तितिक्षा का अनुपम आदर्श उपस्थित करने वाली कतिपय श्रमणियाँ का विवरण हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
2.5.1 गोपालिका
द्रौपदी का सुकुमालिका के भव में इनके पास दीक्षा लेने का उल्लेख है 'गोवालियाओ अज्जाओ बहुस्सुयाओ' कहकर आगमकार ने उसकी बहुश्रुतता की प्रशंसा की है। यह साध्वी संघ की प्रमुखा श्रमणी थी, दृढ़ संयमी एवं शुद्ध वीतराग धर्म की उपदेष्टा थी । सुकुमालिका जैसी धनाढ्य श्रेष्ठी कन्या को उसने संसार के विषय भोगों से विरक्ति दिलाकर संयम - पथ की पथिका बना दिया था। दीक्षा ग्रहण के पश्चात् वह सुकुमालिका को श्रमणी जीवन की मर्यादा के प्रति सजग करती है, उसके शरीर पोषण एवं शिथिलाचार पर प्रतिबंध लगाती है। इस प्रकार वह साध्वी सुकुमालिका के संयमी जीवन को पुनः पुनः स्थिर करने का प्रयास करती है। 147
144. करकंडू कलिंगेसु पंचालेसु य दुम्मुहो। णमी राया विदेहेसु गंधारेसु य णग्गई- उत्तरा 18/46; उत्तरा वृत्ति नेमिचन्द्राचार्य पृ. 92-93; प्राप्रोने. भाग 2 पृ. 549
145. हिं जै. का बृ. सा. इ. भा. 1 पृ. 88 128, 300, 449, 569, भाग 2 पृ. 573; भाग 6 पृ. 352
146. पाटण हस्तलिखित ग्रंथ सूची पत्र भा. 2, ग्रंथांक 16223
147. (क) ज्ञाता. 1/16 (ख) प्राप्रोने 238
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