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प्रागैतिहासिक काल से अर्हत पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ
2.3.72 इला, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घना, विद्युता एवं कुल मिलाकर 54 साध्वियाँ
ये सब वाराणसी नगरी के अपने समान नाम वाले गाथापति दम्पतियों की पुत्रियाँ थीं, वृद्धावस्था तक विवाह न होने से भगवान् पार्श्व से दीक्षा ली, चारित्र की विराधना करने से मृत्यु प्राप्त कर धरणेन्द्र की अग्रमहिषियाँ बनी। नाम केवल 6 के ही उपलब्ध होते हैं, शेष के लिए इतना ही उल्लेख है कि ये क्रमशः संयम की विराधना करने के कारण मृत्यु के उपरांत 6 धरणेन्द्र की, 6 वेणुदेव की, 6 हरिदेव की, 6 अग्निशिख की, 6 पूर्णदेव की, 6 जलकांत की, 6 अमितगति, 6 वेलम्ब, एवं 6 घोषइन्द्र आदि उत्तरेन्द्रों की अग्रमहिषियां बनीं। भविष्य में महाविदेह से मुक्त होंगी।।24
2.3.73 रूपा, सुरूपा, रूपांशा, रूपकावती, रूपकलता, रूपप्रभा कुल 54
ये चम्पानगरी में अपने समान नाम वाले गाथापतियों की पुत्रियां थी। जराजीर्ण हो जाने पर भी अविवाहित रहीं। भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेश से प्रभावित होकर आर्या पुष्पचूला के पास संयम ग्रहण किया। सबने कठोर तपस्या करके संयम के मूलगुणों का पूर्णरूपेण पालन किया। लेकिन शरीर बाकुशिका होकर अंत में मृत्यु प्राप्त कर भूतानंद नामक उत्तरेन्द्र की अग्रमहिषियाँ बनीं। इसमें नाम केवल 6 के दिए हैं, लेकिन कुल 54 साध्वियों का उल्लेख है। ये सभी चारित्र की विराधना द्वारा मरकर क्रमश: 6 वेणुदाली, 6 हरिस्सह, 6 अग्निमाणवक, 6 विशिष्ट, 6 जलप्रभ, 6 अमितवाहन, 6 प्रभंजन, 6 महाघोष, इन्द्रों की अग्रमहिषियाँ बनीं।125
2.3.74 कमला, कमलप्रभा, उत्पला, सुदर्शना, रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा, पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा, भार्या, पद्मा, वसुमती, कनका, कनकप्रभा, अवतंसा, केतुमती, वज्रसेना, रतिप्रिया, रोहिणी, नौमिका, ली, पुष्पवती, भुजंगा, भुजंगावती, महाकच्छा, अपराजिता, सुघोषा, विमला, सुस्वरा, सरस्वती-32
ये बत्तीस ही नागपुर और वाराणसी की स्वनामानुरूप गाथापतियों की पुत्रियाँ थीं। ये भी जब वृद्धावस्था तक कुमारी ही रहीं, तो भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेश से आर्या .पुष्पचूला के पास प्रवजित हो गईं। इन सबने अनेक वर्षों तक संयम व चारित्र का पालन किया। किन्तु शरीर बाकुशिका हो जाने के कारण संयम के उत्तर गुणों की विराधना की और अंत समय में बिना आलोचना किए संलेखना पूर्वक कालधर्म को प्राप्त होकर ये दक्षिण दिशा के कालपिशाचेन्द्र एवं अन्य 31 भी दक्षिणेन्द्र वाणव्यंतर की अग्रमहिषियाँ बनीं।126 2.3.75 बत्तीस कुमारिका-श्रमणियाँ
ये साकेतपुर के अपने समान नाम वाले गाथापति दम्पतियों की पुत्रियाँ थीं। इन्होंने भी भगवान पार्श्वनाथ के उपदेशों से विरक्त हो आर्या पुष्पचूला के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। अनेक वर्षों तक संयम एवं तप की साधना की किन्तु संयम के उत्तरगुणों की विराधिकाएँ होने के कारण ये आयुष्य पूर्ण कर महाकाल आदि उत्तरदिशा के आठ इन्द्रों की बत्तीस अग्रमहिषियाँ बनीं। इनके नामों का उल्लेख नहीं है।127 124 ज्ञाता. 2/3/1-6 125. ज्ञाता. 2/4/1-6 126 ज्ञाता. 2/5/1-32, भगवती 406, स्थानांग 273 127. ज्ञाता . 2/6/1-32
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