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________________ 2.3.76 सूर्यप्रभा, आतपा, अर्चिमाली, प्रभंकरा ये अक्खुरी नगरी में उत्पन्न हुईं। तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ से वृद्धावस्था में दीक्षित होकर शरीर बाकुशिका होने के कारण मृत्यु उपरांत ज्योतिष्केन्द्र सूर्य की अग्रमहिषियाँ बनीं। 128 2.3.77 चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा ये मथुरा में अपने समान नाम वाले गाथापति दम्पति की पुत्रियाँ थीं। भगवान् पार्श्वनाथ से दीक्षित हुई, उत्तर गुणों की विराधना कर ये ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र की अग्रमहिषियाँ बनीं। 1 29 2.3.78 पदमा, शिवा, सती (श्वेता ), अंजू, रोहिणी, नवमिका, अचला, अप्सरा इनमें क्रमश: दो श्रावस्ती, दो हस्तिनापुर, दो कांपिल्यपुर, दो साकेत की पद्म गाथापति और विजया माता की पुत्रियां थीं। जराजीर्ण अवस्था तक विवाह नहीं हुआ, तो पार्श्वनाथ भगवान् का उपदेश सुनकर आर्या पुष्पचूला के पास दीक्षित हुईं। उत्तर गुणों की विराधना कर शक्रेन्द्र ( सौधर्मेन्द्र) की अग्रमहिषियाँ बनीं। 30 जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 2.3.79 कृष्णा, कृष्णराजि, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता ( वसुदत्ता), वसुमित्रा, वसुंधरा इनमें क्रमशः दो वाराणसी, दो राजगृह, दो श्रावस्ती और दो कौशाम्बी के रामगाथापति और धर्मा माता की कन्याएँ थीं। वृद्धावस्था तक कुमारिका रहने के पश्चात् भगवान् पार्श्वनाथ के पास आर्या पुष्पचूला से दीक्षा लेकर उत्तर गुणों की विराधना करने के कारण ये ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियाँ बनीं। 1 31 2.3.80 भूता भूता राजगृह के समृद्ध गाथापति सेठ सुदर्शन एवं उनकी पत्नी प्रिया की इकलौती कन्या थी । इसका विवाह नहीं हुआ और उसी में वह वृद्धावस्था को प्राप्त हो गई। भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेश से संसार का परित्याग किया और पुष्पचूला की शिष्या बनी । कालान्तर में यह स्वतन्त्र जीवन जीने लगी। अंत में मृत्यु प्राप्त कर सौधर्म कल्प विमान में 'श्रीदेवी' के रूप में उत्पन्न हुई। महाविदेह क्षेत्र से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगी। साध्वी भूता के समान ही (1) ही (2) धी (3) कीर्ति (4) बुद्धि (5) लक्ष्मी (6) इला (7) सुरा ( 8 ) रसदेवी और (9) गंधदेवी इन नौ साध्वियों का वर्णन है, जो भगवान् पार्श्वनाथ के शासन में दीक्षित होकर पुष्पचूला आर्या की शिष्याएँ बनीं। ये सभी शरीर बाकुशिका हो गईं। अपनी प्रवर्तिनी के समझाने पर भी इन्होंने शिथिलाचार का अंत तक त्याग नहीं किया और देहोत्सर्ग कर सौधर्म देवलोक में ऋद्धि संपन्न देवियाँ बनीं। देवलोक की आयुष्य पूर्ण कर ये सब महाविदेह क्षेत्र में मुक्त होंगी। 132 128. ज्ञाता 2/7/1-5 129. ज्ञाता 2/8/1-4, भग. 406, जीवाभि. 202, जंबू. 170, स्थानांग 273 130. ज्ञाता 2/9/1-8, भग. 406, स्था. 612 131. ज्ञाता. 2/10/1-8 132. पुष्पचूलिका, अ. 1-10; प्राप्रोने. 2 पृ. 533 Jain Education International 126 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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