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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
राम को बुलाकर सारी स्थिति अवगत कराई। मर्यादा पुरूषोत्तम राम यह सुनकर सहर्ष भरत का राज्याभिषेक कर वन की ओर प्रस्थान कर गये, क्योंकि उन्हें पता था कि मेरे रहते भरत कभी राजगद्दी पर नहीं बैठेंगे।
चौदह वर्ष के पश्चात् राम जब सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो भरत की भावनाएं पुनः साकार हो उठी, राज्य-भार ज्येष्ठ भ्राता राम को सौंपकर भरत ने दीक्षा अंगीकार कर ली। भरत के दीक्षा ले लेने पर कैकयी भी घर में नहीं रह सकी, वह भी तीनसौ स्त्रियों के साथ 'पृथिवीमती' आर्यिका के पास दीक्षित हो गई। अनेक वर्षों तक तप संयम की आराधना कर साध्वी कैकयी सर्वकर्मों से विमुक्त होकर मोक्ष में गई।74
समीक्षा
जैनेतर ग्रंथ रामायण आदि में कैकयी के चरित्र को अत्यंत कुटिल एवं निम्न रूप में चित्रित किया है, किंतु जैन-ग्रंथों में कैकेयी एक वात्सल्यमयी माता, उदार दृष्टिकोण वाली धर्मानुरागिनी विदुषी नारी के रूप में वर्णित है। उसने पुत्र-स्नेह से भरत को राज्य देने की प्रार्थना अवश्य की, किंतु राम वन-गमन करे, ऐसी अभिलाषा उसकी नहीं थी जैन साहित्य के अनुसार कैकेयी का चरित्र उज्जवल है।
2.3.41 सीता
अनेक विषम परिस्थितियों का धैर्य एवं साहस के साथ सामना करने वाली महासती सीता भारतीय नारी के लिये अनुकरणीय आदर्श है। ये विदेह राजा जनक की पुत्री एवं मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की सहधर्मिणी भार्या थी। चौदह वर्ष तक अपने पति राम एवं देवर लक्ष्मण के साथ ये वन में रहीं। अंतिम छह मास लंका में रावण की कैद में रहकर महाभयंकर कष्टों एवं प्रलोभनों के मध्य भी ये अपने शीलधर्म से च्युत नहीं हुईं। वनवास का समय व्यतीत होने के बाद जब ये अयोध्या आईं तब भी अपनी सौंतों की ईर्ष्या का शिकार बन गर्भावस्था में राम द्वारा परित्यक्ता हो गईं। वन में ही सीता ने युगल पुत्र (लव-कुश) को जन्म दिया। तथा अपने पातिव्रत्य धर्म को प्रमाणित करने के लिये अग्नि-परीक्षा भी दी।
असह्य कष्टों की दारूण गाथा महासती सीता ने अंत में जीवन से वैराग्य की शिक्षा लेकर बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के शासन में विचरण करते आचार्य जयभूषण के पास दीक्षा अंगीकार की तथा साध्वी सुप्रभा के नेतृत्व में तप-त्याग द्वारा साठ वर्षों तक आत्म-कल्याण की साधना करके बारहवें देवलोक में देव बनी। महासती सीता भारतीय संस्कृति व समाज में गौरव व सतीत्व की पर्यायवाची है।
2.3.42 अंजना
वीर हनुमान की माता महासती अंजना भारतीय नारी के त्याग, बलिदान, संयम, समर्पण एवं कष्ट-सहिष्णुता का जीवन्त उदाहरण है। यह महेन्द्रपुर नगर के राजा महेन्द्र एवं राजमहिषी मनोवेगा की सर्वांगसुन्दरी कन्या थी। राजा प्रहलाद के पुत्र पवन ने अंजना को विवाह की रात से ही इस आशंका से त्याग दिया था कि वह 'विद्युत्पर्व' को ज्यादा चाहती है। 22 वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात् भाग्य ने करवट बदली, पवन अपनी भूल का पश्चाताप करने 74. (क) विमलसूरि, पउमचरियं 24/37-38, (ख) पद्मपुराण पर्व 86, (ग) त्रि. श. पु. च. 7/4 75. (क) त्रि. श.पु. च. 7/10/94-96 (ख) प्रापौने. 2 पृ. 797; (ग) पद्मपुराण पर्व 109
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