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________________ जैन श्रमणियों का बहद इतिहास 2.3.26 मनोहारी ये राजा जितशत्रु की पत्नी थी, जब इन्हें संसार के कामभोगों से विरक्ति हुई और तीर्थंकर वासुपूज्य के पास दीक्षा लेने को उद्यत हुई तब राजा जितशत्रु ने इन्हें इस शर्त के साथ दीक्षा की आज्ञा प्रदान की, कि ये देवलोक से आकर अपने पुत्र बलदेव अचल को प्रतिबोधित करेंगी। 2.3.27 मेघमाला महानिशीथ में तीर्थंकर वासुपूज्य के श्रमणी-संघ की एक साध्वी 'मेघमाला' का नाम भी उल्लिखित है। संयम के उत्तरगुणों के दूषित होने से वह मरकर आसुरी स्थानों में उत्पन्न हुई। 2.3.28 धरणीधरा आप तेरहवें तीर्थंकर श्री विमलनाथजी की प्रमुख शिष्या थीं, तीर्थोद्गालिक में इनका नाम 'वरा' है। ये एक लाख आठसौ श्रमणियों की प्रमुखा थीं। दिगम्बर-ग्रंथों में इन्हें 'पद्मा' नाम से अभिहित किया है, तथा श्रमणियों की संख्या एक लाख तीन हजार कही है। 2.3.29 पद्मा चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ की प्रमुख शिष्या का नाम 'पद्मा' था। इन्हें एक लाख आठसौ श्रमणियों की प्रमुखा बनने का गौरव मिला था। अन्यत्र बासठ हजार श्रमणियाँ वर्णित हैं। दिगम्बर ग्रंथों में सर्वश्री' गाणिनी की एक लाख आठ हजार श्रमणी संख्या का उल्लेख है। 2.3.30 चिरा/शिवा आप पन्द्रहवें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ की अग्रण्या श्रमणी रही हैं। समवायांग में आपका नाम शिवा और दिगम्बर ग्रंथों में7 'सुव्रता' है। आपकी नेश्राय में बासठ हजार चारसौ श्रमणियों का होना सर्वत्र निर्विवाद है। 2.3.31 श्रुति . जैनधर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ के शासन में श्रमणी-संघ का संपूर्ण नेतृत्व साध्वी श्रुति के हाथों में था। 51. त्रि. श.पु.च. 4/2/348 52. महानिशीथ पृ. 154, द. प्राप्रोने. भाग 2, पृ. 609 53. (क) समवायांग, सूत्र 649, गा. 43, (ख) प्राप्रोने. भा. 1 पृ. 405 54. जै. मौ. इ. भाग 1 पृ. 815,817 55. (क) समवायांग, सूत्र 649, गा. 44, (ख) प्राप्रोने. भा. 1 पृ. 405 56. जै. मौ. इ. भाग 1 पृ. 815,817 57. वही, भाग 1 पृ. 815, 817 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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