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2.3.7 श्यामा ( सामा )
जैनधर्म के तीसरे तीर्थंकर संभवनाथ की ये प्रथम शिष्या थी । इन्हें तीन लाख छत्तीस हजार श्रमणियों की 'प्रमुखा' कहा गया है। 20 दिगम्बर ग्रंथ हरिवंश पुराण में 'धर्मश्री', तिलोयपण्णत्ती में 'धर्मार्या' नाम प्राप्त होता है तथा उक्त दोनों में श्रमणियों की संख्या तीन लाख तीस हजार है। उत्तरपुराण में तीन लाख बीस हजार की संख्या का उल्लेख है | 21
2.3.8 श्री सेनादेवी
आप श्री संभवनाथ भगवान की माता थीं, तथा श्रावस्ती नगर के राजा जितारि की पटरानी थीं। श्री संभवनाथ तीर्थंकर के तीर्थ में दीक्षा ग्रहण कर सर्वकर्मों का क्षय किया, तथा मुक्ति प्राप्त की | 2
2.3.9 अजिता ( अजिया )
चतुर्थ तीर्थंकर अभिनन्दन नाथ की प्रमुखा शिष्या के रूप में इनका नाम आदर के साथ लिया जाता है। श्रमणी - अग्रणी अजिता छह लाख तीस हजार श्रमणी - संघ की प्रमुखा थी। 23 दिगम्बर ग्रंथों में 'मेरूसेना' 'मरूषणा' तथा 'मरूषेणा' नाम है। इनकी श्रमणी संख्या हरिवंशपुराण में तीन लाख तीस हजार और तिलोयपण्णत्ती में तीन लाख तीस हजार छह सौ निर्दिष्ट हैं | 24
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
2.3.10 श्री सिद्धार्था देवी
चतुर्थ तीर्थंकर श्री अभिनन्दन नाथ की जननी थीं, ये अयोध्या के राजा संवर की महारानी थीं। श्री अभिनन्दन नाथ के तीर्थ में दीक्षा ग्रहण कर तप-संयम की आराधना की तथा अंत में केवलज्ञान केवलदर्शन को प्राप्त कर मोक्ष की अधिकारिणी बनीं 125
2.3.11 काश्यपी (कासवी)
पाँचवे तीर्थंकर श्री सुमतिनाथजी की अग्रणी शिष्या काश्यपी पाँच लाख तीस हजार श्रमणियों का कुशलता पूर्वक नेतृत्व करती थी। 26 दिगम्बर ग्रंथों में इन्हें तीन लाख तीस हजार साध्वियों की प्रमुखा कहा है। तथा ‘अनन्ता' 'अनन्तमती' नाम दिया है। 27
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20. (क) समवायांग सूत्र 649, पृ. 231 (ख) प्राप्रोने भा. 1. पृ. 776
21. दृ. जै. मौ. इ. 1. पृ. 815, 817
22. (क) समवायांग सूत्र 634 गा. 9 (ख) तिलोयपन्नत्ती, गा. 526-549 (ग) जैन शासननां श्रमणी - रत्नो, पृ. 82
23. (क) समवायांग पृ. 231, सू. 649 (ख) प्राप्रोने भा. 1 पृ. 25
24. दृ. जै. मौ. इ., पृ. 815, 817
25. (क) समवायांग, सूत्र 634 गा. 9, (ख) तिलोयपन्नत्ती, गा. 526-549, (ग) जैन शासननां श्रमणीरत्नो, पृ. 82 26. (क) समवायांग पृ. 231, सू. 649 (ख) प्राप्रोने. भाग 1 पृ. 177
27. जै. मौ. इ., भाग 1 पृ. 815, 817
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