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________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास श्राविकाएँ थीं। दिगम्बर ग्रंथों में ब्राह्मी को 3.50,000 श्रमणियों की प्रमुखा बताया है। चौरासी लाख पूर्व की आयु पूर्ण कर महासती ब्राह्मी सिद्धगति को प्राप्त हुई। 2.3.2 सुन्दरी सुन्दरी ऋषभदेव की द्वितीय पत्नी सुनन्दा से बाहुबली के साथ युगल रूप में उत्पन्न हुई थी। पिता ऋषभदेव ने सुंदरी को सर्वप्रथम अंकविद्या, मान, उन्मान, तोल, नाप आदि का ज्ञान कराया और मणि आदि के उपयोग की विधि भी बताई। श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार सुन्दरी भी तीर्थंकर ऋषभदेव के प्रथम प्रवचन को श्रवण कर संयम ग्रहण करना चाहती थी, किंतु सम्राट् भरत के द्वारा आज्ञा प्राप्त न होने से वे दीक्षित नहीं हो पाई। भरत उसे स्त्री-रत्न बनाना चाहते थे, किंतु सुंदरी ने प्रभु ऋषभदेव से सुना कि 'स्त्री-रत्न' का गौरव प्राप्त करने वाली नारी नरकगामिनी होती है, अतः उसने संयम की उत्कृष्ट भावना से सम्राट् भरत के दिग्विजय प्रस्थान के साथ ही आयम्बिल व्रत (रूक्ष भोजन) की साधना प्रारम्भ कर दी। भरत जब षट्खण्ड पर विजय प्राप्त कर दीर्घकाल के पश्चात् विनीता लौटे तब सुन्दरी के तप से कृश तनु को देखकर चकित रह गये। उसका दृढ़ संयम एवं वैराग्य देखकर अन्ततः भरत को दीक्षा की अनुमति देनी पड़ी। आचार्य जिनसेन के अनुसार सुन्दरी ने भगवान ऋषभदेव के प्रथम प्रवचन से ही प्रतिबोध पाकर ब्राह्मी के साथ दीक्षा ग्रहण की। हरिवंशपुराण में ब्राह्मी के साथ सुंदरी को भी गणिनी कहकर तीन लाख साध्वियों की प्रमुखा बताया है। इन दोनों बहनों द्वारा बाहुबली के अन्तर में छिपे सूक्ष्म मान को समाप्त करने का घटना-प्रसंग भी जैन इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध है। बाहुबली एक वर्ष से जंगल में ध्यान लगाये खड़े थे, तथापि ज्येष्ठत्व के अहं का त्याग नहीं कर पाने के कारण उनकी कठोरतम साधना भी फलीभूत नहीं हो पा रही थी। बाहुबली को जागृत करने के लिए भगवान ऋषभदेव ने ब्राह्मी और सुंदरी को प्रेषित किया। भगिनीद्वय ने बाहुबली को नमन किया और कहा-"हमारे प्रिय भैया! आप हस्ती पर से नीचे उतरो, हस्ती पर आरूढ़ व्यक्ति को कभी केवलज्ञान की उपलब्धि नहीं होती।" बहनों के चिर-परिचित स्वर एवं उसका अभिप्राय समझकर बाहुबली के चिंतन का प्रवाह बदला, "ओह! बहने सत्य कह रही हैं। मैं अहंकार के हाथी पर सवार हूँ, परमात्मा बनने के लिये मुझे अहंकार को चूर करना होगा"। यह विचार कर लघु-बन्धुओं को वंदना के लिये जैसे ही उनके हिमाचल से स्थिर चरण भूमि से उठे कि केवलज्ञान, केवल दर्शन प्रगट हो गया। दिगम्बर-परम्परा में बाहुबली के मान की निवृत्ति भरतजी की क्षमायाचना एवं पूजा द्वारा मानी गई हैं। 10. हरिवंशपुराण परिशिष्ट-59, महापुराण 16/4-7 दृष्टव्य-जैन पुराण कोश पृ. 252 11. त्रिषष्टिशलाकापुरूष चरित्र, पर्व 1 सर्ग 3 श्लोक 650-55 12. (क) आवश्यक चूर्णि भाग 1 पृ. 156-211; (ग) आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, पत्र संख्या 194-983; (घ) त्रि.श.पु.च 1/4/758-795 13. द. महापुराण 24/1773; हरि. पु. सर्ग 12 पृ. 212 14. (क) त्रि. श. पु.च. 1/4/795-798, (ख) आव. मलय, वृ. पत्र सं. 194-98 104 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001693
Book TitleJain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Sadhvi Arya
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year2007
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size24 MB
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