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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
काष्ठपट्टिका पर श्रमणी का चित्र (संवत् 1800 )303
चित्र 25
यह चित्र संग्रहणी प्रकरण की संवत् 1800 की लिखित हस्तलिखित प्रति के ऊपर लकड़ी के पुढे पर दिया हुआ है। चित्र में अलग-अलग चार विभाग बनाकर चतुर्विध संघ की प्रतीति कराता हुआ साधु, साध्वी, श्रावक एवं श्राविका का चित्र बनाया गया है। साधु एवं साध्वी डोरे सहित मुँहपत्ती बांधे हुए हैं जो स्थानकवासी परंपरा का प्रतीक चिह्म है। राजीमती व रथनेमि का चित्र (18वीं सदी)304
सरसकिमोसनेम्वरमलरीजी यस्या/शासीकहाकिदिवास्यदि पावसामसाधावली smनवमुकनैरासरताराबीजीयरणा याआवमी जीयरसीममममार MAध्यारुडारवराभ्यरतणी मिनकामनलागाहरिविफिटरम एतायीकिटकनामावलममा केमाधणाबासकचि तजनहरबसे जिमचकवीमनब मतालिममुकमनजाधव समुंवरसहजैमरामाणि संघाचमाहीमिलवात्त अधि
चित्र 26 'नेमराजुल की चौपाई' के एक हस्तलिखित पत्र पर राजीमती एवं रथनेमी का चित्रांकन है, दोनों के मुख पर डोरे सहित मुखवस्त्रिका एवं बगल में रजोहरण है। साध्वी साधु को उपदेश देती प्रतीत हो रही है। साधु के शरीर को बैंगनी कलर से रंगा हुआ होने से यह निर्णय नहीं होता कि उसकी वेशभूषा का क्या स्वरूप है? इसके साथ ही कुछ स्त्रियाँ आनन्दोत्सव मना रही है, सभी नृत्य की मुद्रा में हैं। चित्र 18वीं सदी का है। 303-304. स्व. गुलाबचन्द जी लोढ़ा, चीराखाना, दिल्ली के संग्रह में से
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